बात सेहत की : एलर्जिक रायनाइटिस की टीस को आयुर्वेद करेगा दूर varanasi news
नाक हमारे शरीर का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है गंध सूंघने के साथ साथ सांस के साथ शरीर में प्रवेश करने वाले धूल कणों और हानिकारक पदार्थों को रोकती है।
वाराणसी, जेएनएन। नाक हमारे शरीर का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है गंध सूंघने के साथ साथ सांस के साथ शरीर में प्रवेश करने वाले धूल कणों और हानिकारक पदार्थों को रोकती है। लेकिन जब यह धूल कण आदि पदार्थ किसी तरह शरीर में प्रवेश करने में सफल हो जाते है तो हमारे शरीर की इम्यूनिटी इनके प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करती है, जो एलर्जी के रूप में सामने आती है। चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय , वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डॉ अजय कुमार इसी तरह की एलर्जी जब नाक में हो जाती है तब इसे एलर्जिक राइनाइटिस कहते हैं।
एलर्जिक रायनाइटिस के लक्षण क्या है
1. लगातार छींकें आना
2. नाक से पानी जैसा तरल पदार्थ का लगातार बहना।
3. नाक, आंख, तालू में खुजली होना।
4. नाक बंद होना
5. सिरदर्द बना रहना।
6. कभी कभी खांसी आना
इसके प्रमुख कारण क्या हैं
1. बदलता हुआ मौसम से बार बार तापमान में बदलाव होता है जिससे एलर्जी की संभावना अधिक रहती है।
2. तापमान में अचानक परिवर्तन।
3. धूल-मिट्टी, नमी, प्रदूषण से एलर्जी हो जाती है।
4. जानरों के रेशे एवं बाल का शरीर में प्रवेश के कारण एलर्जी।
5. पेड़ और परागकणों के शरीर में प्रवेश करने ।
एलर्जिक राइनाइटिस में क्या सावधानियां रखनी चाहिए
1. धूल व धुंए से बचें और मास्क का प्रयोग करें।
2. तापमान में अचानक परिवर्तन होने पर बचाव करें। मौसम के अनुरूप कपड़े पहनें।
3. गाड़ी चलाते समय धूल से बचने के लिए मुंह और नाक पर रुमाल बांधे, आंखों पर धूप का अच्छी क्वालिटी का चश्मा लगाएंl
4. पर्दे, चादर, बेडशीट व कालीन को नमी से बचाने के लिए समय-समय पर इन्हें धूप में रखें।
5. बाल वाले जानवरों से दूर ही रहें। पालतू जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखेंl
6. एकदम गर्म से ठंडे और ठंडे से गर्म वातावरण में न जाएंl
7. यदि घर में वैक्यूम क्लीनर हो, तो झाडू की जगह उसका इस्तेमाल करें ।
आयुर्वेद और इलाज़
आयुर्वेद के अनुसार एलर्जिक रायनाइटिस को प्रतिश्याय कहा जाता है। इसमे वात, पित्त और कफ आदि दोषों का प्रकोप रहता है। इसके इलाज़ में बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है। निम्न उपायों द्वारा इसका इलाज़ किया जा सकता है परन्तु अधिक समस्या होने पर नजदीकी आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह अवश्य लेनी चाहिए ।
1. व्यक्ति को अपने खान पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए । अल्प मात्रा में भोजन करना चाहिए जिससे वात पित्त और क़फ तीनो साम्यावस्था में रहें।
2. तुलसी, अदरक, मिर्च आदि का काढ़ा बनाकर सुबह शाम पीना चाहिए ।
3. अडूसा यानी वासा का रस निकलकर पीने से प्रतिश्याय रोग में बहुत लाभ मिलता है ।
4. सोंठ को गाय के दूध में पकाकर पीने से इसमें बहुत फायदा होता है
5. हल्दी और दूध एक साथ पकाकर पीने से यह रोग जल्दी ठीक हो जात है ।
6. आयुर्वेद की औषधियों में हरिद्रा खण्ड, शिरिषादी क्वाथ , गोजिह्वादी क्वाथ, कनकासव, लक्ष्मीविलास रस, श्वास कास चिंतामणि रस आदि औषिधयों का प्रयोग करने से रोगी को पूर्ण आराम मिलता है लेकिन इन औषधियों का प्रयोग किसी वैद्य के सलाह से ही करानी चाहिए।
7. इनके अलावा चित्रक हरीतकी, अमृता सत्व का भी प्रयोग किया जा सकता है।
8. पंचकर्म चिकित्सा में षडबिन्दु तैल से नस्य देने से भी आराम मिलता है।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप