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AIDS DAY : आयुर्वेद बनाएगा एड्स रोगी को सबल, इम्युनिटी बढ़ाने का सबसे सरल उपाय

एचआईवी पोजिटिव व्‍यक्ति कई वर्षो (6 से 10 वर्ष) तक सामान्‍य होता है और सामान्‍य जीवन व्‍यतीत कर सकता है, लेकिन दूसरो को बीमारी फैलाने में सक्षम होता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 30 Nov 2018 07:21 PM (IST)Updated: Sat, 01 Dec 2018 01:48 PM (IST)
AIDS DAY : आयुर्वेद बनाएगा एड्स रोगी को सबल, इम्युनिटी बढ़ाने का सबसे सरल उपाय

वाराणसी [कृष्‍ण बहादुर रावत] । एड्स यानी एक्‍वायर्ड इम्‍यूनो डेफि‍सिएंसी सिंड्रोम, एच.आई.वी. नामक विषाणु से होता है। एचआईवी पोजिटिव व्‍यक्ति कई वर्षो (6 से 10 वर्ष) तक सामान्‍य प्रतीत होता है और सामान्‍य जीवन व्‍यतीत कर सकता है, लेकिन दूसरो को बीमारी फैलाने में सक्षम होता है। एड्स नाम तो पिछले कुछ दशकों में मिला लेकिन इस बीमारी के लक्षणों का उल्लेख पांच हजार से भी अधिक आयुर्वेद के ग्रंथों में मिलता है। इस बीमारी का वर्णन ओजक्षय के नाम से किया गया है।

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एक अनुमान के मुताबिक अभी भी देश में 15 से 49 वर्ष की उम्र के बीच के लगभग 25 लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं। यह आंकड़ा विश्व में एड्स प्रभावित लोगों की सूची में तीसरे स्थान पर आता है। भारत सरकार द्वारा प्रकाशित आकड़ों में एचआईवी आंकलन 2012 के अनुसार भारतीय युवाओं में वार्षिक आधार पर एड्स के नए मामलों में 57% की कमी आई है तब से अब तक प्रयायों के परिणाम सार्थक आते रहे हैं। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत किये गए एड्स के रोकथाम संबंधी विभिन्न उपायों एवं नीतियों का ही यह प्रभाव था कि 2000 में एड्स प्रभावित लोगों की जो संख्या 2.74 लाख थी, वह 2011 में घटकर 1.16 लाख हो गई। एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के प्रयोग में आने के बाद एड्स से मरने वालों की संख्या में कमी आई है। 2007 से 2011 के बीच एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में वार्षिक आधार पर 29% की कमी आई। ऐसा अनुमान है कि 2011 तक लगभग 1.5 लाख लोगों को एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) की मदद से बचाया जा चुका है। एड्स के मरीजों में आयुर्वेद से बढिया इम्युनिटी बढ़ाने का उपाय नही हो सकता है। आइये जानते है चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय , वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डॉ अजय कुमार से इसके बारे में विस्तार से -

 एड्स का खतरा किसे अधिक होता है-

1. एक से अधिक लोगों से असुरक्षित यौन संबंध रखने वाले व्‍यक्ति को

2. वेश्‍यावृति करने वालों से यौन सम्‍पर्क रखने वाले व्‍यक्ति को

3. नशीली दवाईयां इंजेक्‍शन के द्वारा लेने वाला व्‍यक्ति।

4. यौन रोगों से पीडित व्‍यक्ति।

5. संक्रमित पिता/माता से पैदा होने वाले बच्‍चें को

6. बिना जांच किया हुआ रक्‍त ग्रहण करने वाला व्‍यक्ति।

 

एड्स रोग कैसे फैलता है-

1. एच.आई.वी. संक्रमित व्‍यक्ति के साथ यौन सम्‍पर्क से।

2. एच.आई.वी. संक्रमित सिरिंज व सुई का दूसरो के द्वारा प्रयोग करने सें।

3. एच.आई.वी. संक्रमित मां से शिशु को जन्‍म से पूर्व, प्रसव के समय या प्रसव के शीघ्र बाद।

4. एच.आई.वी. संक्रमित अंग के प्रत्‍यारोपण से।

 

एड्स के प्रमुख लक्षण क्या होते है -

एच.आई.वी. पॉजिटिव व्‍यक्ति में संक्रमण के 7 से 10 साल बाद विभिन्‍न लक्षण प्रमुख रूप से दिखाई पडते हैः

1. गले या बगल में सूजन भरी गिल्टियों का हो जाना।

2. लगातार कई-कई हफ्ते अतिसार घटते जाना।

3. लगातार कई-कई हफ्ते बुखार रहना।

4. हफ्ते खांसी रहना।

5. अकारण वजन घटते जाना।

 

एड्स में आयुर्वेदिक उपचार-

एड्स नाम से ही स्पष्ट है कि यह इम्युनिटी अर्थात व्याधिक्षमत्व कम होने से होने वाली बीमारी है। आयुर्वेद के सभी ग्रंथों में इसका उल्लेख व्याधिक्षमत्व और ओज व्यापत के अंतर्गत किया गया है। ग्रंथों में इस बीमारी के तीन चरणों का उल्लेख किया गया हैं। 

1.ओज विस्रन्स

2. ओज व्यापत

3. ओजक्षय

 

ओजविस्रन्स और ओज व्यापत की अवस्था में रोगी में कुछ बल बचा रहता है लेकिन ओजक्षय की अवस्था में पूर्ण ओज का क्षय हो जाता है, जिससे मृत्यु तक हो जाती है, यही एड्स की अंतिम अवस्था है। आयुर्वेद में इस बीमारी के इलाज़ के लोए ओजवर्धक दवाइयों का प्रयोग होता है। यें दवाइयां रोगी की आयु और रोग के चरण पर निर्भर करती है। 

इस रोग में कुशल वैद्य की देख रेख में  : अमृता सत्व, आमलकी चूर्ण,शतावरी मूल चूर्ण, कपिकछू  चूर्ण, रुदन्ति चूर्ण आदि से लाभ मिलता है। 

इसके अलावा : स्वर्ण वसंतमालती रस, सिद्ध मकरध्वज, रसराज रस,वज्र भस्म, स्वर्ण भस्म, रौप्य भस्म और यसद भस्म आदि का उपयोग एड्स के रोगी के लिए लाभप्रद होता है। इनसे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर रोगों से लड़ने के लिए तैयार हो जाता है।


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