कलाकृतियां कहतीं कथा तो सुनातीं व्यथा
रत्नाकर दीक्षित, वाराणसी : कलाकृतियां कुछ कहती हैं, कुछ ही नहीं बल्कि बहुत कुछ कहती
रत्नाकर दीक्षित, वाराणसी : कलाकृतियां कुछ कहती हैं, कुछ ही नहीं बल्कि बहुत कुछ कहती हैं। कलाकार के नजरिए का स्वरूप होती है, उसकी मेहनत का मूर्तरूप होती हैं। पूरी कहती हैं कथा तो सुनाती हैं व्यथा। किसी प्रकरण का सार बताती हैं तो गीत भी गाती और गुनगुनाती हैं। लगभग कुछ ऐसा ही नजारा था बीएचयू के दृश्यकला संकाय में तीन दिवसीय कला मेला का। सोमवार को समापन के दिन बेजान पत्थर और कागज भी मौन की भाषा को बोल और गुनगुना रहे थे।
असिस्टेंट प्रोफेसर मृगेंद्र प्रताप सिंह के संयोजकत्व में आयोजित कला मेले ने इस दफा एक नया मुकाम हासिल किया। तीन दिन में करीब हजारों रुपये की कलाकृतियों की खरीदारी भी हुई। मेले की खासियत यह कि सभी विभागों का बेहतर तालमेल देखने को मिला। अध्यापकों व छात्रों द्वारा बनाई गई कृतियां दर्शकों को खूब भायी तो दर्शकों ने उनको जमकर सराहा भी। दर्शकों को सबसे अधिक संस्थापन कला की कृतियां पसंद आई। कला मेले में आम आदमी के जरूरतों की वस्तुओं को कलात्मक रूप दिया गया था। बतौर उदाहरण पॉटरी और सिरेमिक विभाग की ओर से कप-प्लेट, पेन, गमला आदि दर्शकों को स्वत: ही आकर्षित कर रहे थे। वहीं अप्लाइड आर्ट के छात्रों द्वारा बनाया गया भूत घर भी बच्चों को खूब भाया। वहीं चित्रकला विभाग के छात्रों व अध्यापकों के चित्र भी दर्शकों ने खरीदा और कला को सराहना से परे घरों की शोभा बनाने के प्रयासों को पर भी दिया।