Ganga River in Varanasi : एक्वेरियम की बड़ी मछलियां गंगा में पहुंचकर मचा रही हैं तबाही
रामनगर क्षेत्र में गुरुवार को गंगा नदी से सकर माउथ कैटफिश पकड़ कर गंगा प्रहरियों ने बीएचयू के जंतु विज्ञान में वैज्ञानिकों को सौंप दिया। वैज्ञानिकों को मछली देते हुए गंगा प्रहरी दर्शन निषाद ने बताया कि मछुआरों को अब ये मछलियां हर रोज मिल रही हैं।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। रामनगर क्षेत्र में गुरुवार को गंगा नदी से सकर माउथ कैटफिश पकड़ कर गंगा प्रहरियों ने बीएचयू के जंतु विज्ञान में वैज्ञानिकों को सौंप दिया। वैज्ञानिकों को मछली देते हुए गंगा प्रहरी दर्शन निषाद ने बताया कि मछुआरों को अब ये मछलियां हर रोज मिल रही हैं, इनसे गंगा की आम मछलियों के जीवन यापन में समस्या आ रही है। इस पर बात करते हुए देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. संदीप गुप्ता ने बताया कि इन मछलियों ने अब गंगा की छोटी-छोटी मछलियों को खाना शुरू कर दिया है, इससे गंगा का जैविक चक्र बिगड़ रहा है। यदि जल्द कोई उपाय नहीं किया गया, तो ये भारत के संपूर्ण जलीय वातावरण के लिए अराजक स्थिति हो जाएगी। ये गंगा में आईं आक्रमणकारी विदेशी (एलियन) मछलियां हैं, जिसके लिए भारत का एक्वेरियम व्यापार पूरी तरह से जिम्मेदार है।
गंगा की सहायक नदियों में भी हो रहा है इनका प्रवेश
बीएचयू के जंतु विज्ञान विभाग में मत्स्य विज्ञानी प्रो. बेचन लाल ने बताया कि एक्वेरियम की मछलियां जब बड़ी हो जाती हैं तो लोग उन्हें गंगा में छोड़ देते हैं, धीरे-धीरे इनका इतना ज्यादा विकास हो गया कि अब अमूमन हर जगह पकड़ ली जा रही है। प्रो. बेचन लाल ने बताया कि बहते पानी से इन्हें समाप्त कर पाना अब संभव नहीं है और ये गंगा के रास्ते कई धाराओं और सहायक नदियों में भी घुस चुकी हैं, इस कारण से मछलियों को खत्म कर पाना अब हमारे वश में नहीं है। गंगा प्रहरी निषाद के अनुसार ये मछलियां देखने में भले ही आकर्षक लगें, मगर बाजार में इनका कोई मोल भी नहीं है। इनकी पीठ पर स्कल्स हैं ही नहीं, बल्कि कांटे ही कांटे हैं। अमेजन नदी की इन मछलियों से गंगा की जैव विविधता पर बेहद हानिकारक असर पड़ रहा है।
धार्मिक मान्यताओं ने भी बढ़ाया संकट
गंगा नदी में धार्मिक मान्यताओं की वजह से भी लोग गंगा नदी में मछलियां छोड़ते हैं। अमूमन अभिजात्य वर्ग गंगा में एक्वेरियम की मछलियां छोड़ जाते हैं मगर गंगा नदी में विदेशी प्रजाति की मछलियां आने के बाद से ही दूुश्वारी शुरु हुई है। गंगा के जलीय वातावरण में यह मछलियां बेहतर तरीके से पल और बढ़ रही हैं। साथ ही गंगा नदी में मौजूद नन्हीं और लंबे समय से रह रही मछलियाें को अपना चारा बना रही हैं ऐसे में जलीय असंतुलन का खतरा इन विदेशी प्रजाति की मछलियों से नदी को पैदा हो गया है।