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अंग्रेजों का दिया बैंक ड्राफ्ट 'वीरमाता' ने भुनाना भी नहीं किया कुबूल, बन गया धरोहर

काशी की धरती वीरों से खाली नहीं रही, वीरमाता देवता जी ने अंग्रेजों की रकम भुनाना भी कुबूल नहीं किया था।

By JagranEdited By: Published: Wed, 08 Aug 2018 09:45 AM (IST)Updated: Wed, 08 Aug 2018 09:45 AM (IST)
अंग्रेजों का दिया बैंक ड्राफ्ट 'वीरमाता' ने भुनाना भी नहीं किया कुबूल, बन गया धरोहर

राजेश चौबे, चौबेपुर (वाराणसी) : अध्यात्म की नगरी काशी में वीरों की भी कभी कमी नहीं रही। जिले के कैथी गांव निवासी 'देवता जी' को ब्रिटिश हुकूमत में वीर माता सम्मान से नवाजा गया था। यह सम्मान द्वितीय विश्व युद्ध में एक ही परिवार के छह लोगों के शामिल होने पर दिया गया था। खास बात यह है कि सम्मान स्वरूप उनको एक बैंक ड्राफ्ट भी इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया (भारतीय स्टेट बैंक) का मिला, मगर वीरमाता ने अंग्रेजों की रकम को भुनाना स्वीकार नहीं किया। लिहाजा आज भी परिवार के पास वह बैंक ड्राफ्ट मौजूद है।

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सामाजिक क्षेत्र में अपना योगदान करने वाले कैथी (भंदहा कला) निवासी वल्लभाचार्य पांडेय की परदादी स्व. भगवती देवी को सम्मान में देवता जी कहा जाता था। उनके परदादा स्व. पं. नीलांबर पांडेय जम्मू-कश्मीर राज दरबार में राज ज्योतिषी थे। उनके छह पुत्रों में से चार ने उस समय विभिन्न सरकारी सेवा में होने के कारण ब्रिटेन समर्थित मित्र राष्ट्र की सेना में अपनी सेवाएं दी थीं। इसके अलावा उनके दो पौत्र भी युद्ध में शामिल हुए। इस प्रकार परिवार के कुल छह लोगों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपनी सेवा तत्कालीन सेना को शार्ट सर्विस कमीशन के माध्यम से प्रदान की थी।

युद्ध समाप्ति के बाद तत्कालीन जिला कलेक्टर वाराणसी के हाथों श्रीमती देवता जी को और उनके सभी सैनिक पुत्र और पौत्रों की उपस्थिति में 600 रुपये के ड्राफ्ट एवं अंगवस्त्र के साथ 'वीर माता सम्मान' दिया गया था। यह ड्राफ्ट अब भी वल्लभाचार्य के पास सुरक्षित है। इस बाबत उनका कहना है कि यह एक धरोहर है जो हमारे लिए पूज्य है क्योंकि इससे हमारे पूर्वजों की गरिमामयी यादें जुड़ी हुई हैं। ड्राफ्ट की कीमत उस समय काफी थी मगर देश की आजादी की कीमत उनके लिए कहीं ज्यादा थी लिहाजा ड्राफ्ट को भुनाना स्वीकार नहीं किया। परिवार के सदस्यों ने की भागीदारी : भगवती देवी (देवता जी) और नीलांबर जी के चार पुत्रों में उदयशकर, महेंद्र शकर, उमा शकर, डा. प्रेम शकर के अलावा पौत्र राजेंन्द्र नाथ पांडेय तथा नरेंद्र नाथ पांडेय ने द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था। ड्राफ्ट का नहीं लिया भुगतान : वल्लभाचार्य बताते हैं कि मेरे दादा जी उमा शकर पांडेय ने बताया था कि ड्राफ्ट का भुगतान लेने के लिए देवता जी सहित किसी भी पुत्र और पौत्र की सहमति नहीं बनी थी। उन लोगों का मानना था कि देश की आजादी इस ड्राफ्ट से कहीं अधिक कीमती है। 105 वर्ष की अवस्था में हुआ निधन : श्रीमती देवता जी का देहात 105 वर्ष की उम्र में 1961 में काशीवास करते हुए नरहरिपुरा इश्वरगंगी मोहल्ले में उनके पौत्र नरेंद्र नाथ पांडेय के आवास पर हुआ। वहीं वल्लभाचार्य की दादी स्व. शाति देवी पांडेय भी स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रहीं और जीवन काल में कई सामाजिक दायित्वों का भी निर्वहन किया।


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