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नासा का डेटा लेकर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में तैयार हो रहा पंचांग, तीज-त्योहारों में भिन्नता को किया जाएगा दूर

तीज-त्योहार की तिथि को लेकर देश में कई बार भ्रम की स्थिति बनी रहती है। नासा द्वारा उपलब्ध तिथि नक्षत्र योग व स्टैंडर्ड टाइम के आधार पर विश्वविद्यालय का पंचांग विभाग गणना कर स्थानीय सूर्योदय सूर्यास्त व दिनमान कांति निकालता है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 13 Mar 2021 05:30 AM (IST)Updated: Sat, 13 Mar 2021 05:30 AM (IST)
तीज-त्योहार की तिथि को लेकर देश में कई बार भ्रम की स्थिति बनी रहती है।

वाराणसी, जेएनएन। तीज-त्योहार की तिथि को लेकर देश में कई बार भ्रम की स्थिति बनी रहती है। एक ही त्योहार काशी में किसी और दिन तो दिल्ली व कन्या कुमारी में किसी और दिन पड़ता है। इसके पीछे स्थानीय स्तर पर अलग-अलग सूर्योदय व सूर्यास्त का समय होना व पंचांगों में एकरूपता न होना प्रमुख कारण होता है। दूसरा पंचांग बनाने की अलग-अलग गणितिय विधि। ज्यादातर पंचांग अब मकरंद सारिणी पर आधारित बनने लगे हैं। जबकि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब भी नेशनल एरोनानाटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) द्वारा उपलब्ध कराने वाले डेटा से पंचांग तैयार करता है।

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नासा द्वारा उपलब्ध तिथि, नक्षत्र, योग व स्टैंडर्ड टाइम के आधार पर विश्वविद्यालय का पंचांग विभाग गणना कर स्थानीय सूर्योदय, सूर्यास्त व दिनमान, कांति निकालता है। इसके आधार पर घटी पल की गणना की जाती है। अक्षांत-कांति से ग्रहों की चाल, अंतर, दिनमान, कर्ण, औदायिक, स्पष्ट सूर्य, रवि क्रांति सहित अन्य की बारीकी से गणना की जाती है। विश्वविद्यालय द्वारा दर्शाए गए अशुद्धियों को ठीक कर नासा दोबारा पंचांग विभाग को डाटा भेजता है। विभिन्न स्तरों पर गणना करने के बाद विश्वविद्यालय पंचांग तैयार करता है। यही कारण है कि विश्वविद्यालय के महामहोपाध्याय श्रीबापूदेव शास्त्री पंचांग की महत्ता पूरी दुनिया में आज भी बनी हुई है। प्रदेश सरकार ही नहीं भारत सरकार की निगाहें भी विश्वविद्यालय के पंचांग पर टिकी रहती है। प्रदेश सरकार तो इसी पंचांग के आधार पर सूबे में तीज-त्योहारों पर अवकाश भी घोषित करता है।

पूरे साल होती है गणना

सहायक संपादक (पंचांग) डा. रविशंकर भार्गव ने बताया कि नासा पूरी दुनिया को तिथि, नक्षत्र व योग भी उपलब्ध कराता है। पहले नासा सीधे विश्वविद्यालय को तिथि, नक्षत्र व योग भी उपलब्ध कराता था। अब भारत मौसम विज्ञान विभाग के माध्यम से नासा एक साल आगे का डाटा उपलब्ध कराया है। विभाग में एक-एक डाटा का मिलान कर गणना की जाती है। नासा द्वारा उपलब्ध कराए गए डाटा के आधार पर घटी, पल, नक्षत्र, तिथि, स्टैंडड टाइम, कर्ण, मद्रा, मूर्हत आदि की गणना विभाग द्वारा की जाती है। गणना का कार्य पूरे साल चलता रहता है। एक सेकेंड का भी कही कोई गणना में अंतर आता है तो इसकी सूचना आइएमडी-कोलकाता के माध्यम से नासा को दी जाती है। उन्होंने बताया कि नासा के डाटा में श्रावण शुक्ल 11, बुधवार (18 अगस्त 2021) में पुत्रदा के स्थाप पर पवित्रता एकादशी हो गया था। इसी प्रकार कुशोत्पटिनी अमावस्था भा.कृ. 30 मंगलवार (सात सितंबर 2021), जीवत्पुत्रिका व्रत (29 सितंबर 2021) को दर्शाया गया था। इसी प्रकार छोटी-छोटी अशुद्धियों को शुद्ध कर आइएमडी-कोलकाता के माध्यम से नासा को भेज दिया गया है।

1876 से बन रहा पंचांग

ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रो. अमित कुमार शुक्ल ने बताया कि ब्रिटिश सरकार के समय वर्ष 1876 में संस्कृत विश्वविद्यालय में पंचांग विभाग की स्थापना हुई थी। महामहोपाध्याय बापूदेव शास्त्री इसके पहले विभागाध्यक्ष थे। उस समय यह विभाग पूरी तरह से स्वतंत्र हुआ करता था। ऐसे में विश्वविद्यालय में पंचांग बनाने की शुरूआत वर्ष 1976 में हुई थी। बापूदेव ने 48 वर्षों तक सेवा दी। छह जून 1890 को निधन होने के बाद पंचांग विभाग की कमान उनके पुत्र प्रकांड विद्वान पं. गणपति देव शास्त्री ने संभाली। वहीं वृद्धावस्था आने पर उन्होंने अपने मित्र राजकीय संस्कृत कालेज (अब संस्कृत विवि) के प्राचार्य महामहोपध्याय पं. नारायाण शास्त्री खिस्ते से इसे राज्य सरकार को सौंपने की इच्छा प्रकट किया। उन्होंने तत्कालीन शिक्षामंत्री डा. संपूर्णानंद से इस संबंध में बात की। राज्य सरकार ने 23 मई 1951 में इसे स्वीकार कर लिया। तत्कालीन प्राचार्य त्रिभुवन प्रसाद उपाध्याय ने चार जुलाई 1951 में इसकी रजिस्ट्री करा ली। तब से यह पंचांग उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन था। 21 मार्च 1958 में संस्कृत कालेज को विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद यह पंचांग संस्कृत विवि के अधीन आ गया। अब पंचांग विभाग को ज्योतिष विभाग में विलय कर दिया गया है।

नासा की स्थापना टूटी परंपरा  

नासा की स्थापना से पहले तिथि, नक्षत्र, योग व स्टैंडर्ड टाइम की गणना परंपरागत वेधशाला से की जाती थी। गणना करने महामहोपाध्याय बापूदेव शास्त्री स्वयं मानमंदिर वेधाशाला जाते थे। हालांकि नासा की स्थापना के बाद यह परंपरा टूट गई।


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