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वाराणसी के गंगा में दोबारा मिलीं अमेजन नदी में पाई जाने वाली एलियन मछलियां, सात इंच तक लंबी

गंगा में दोबारा से रंग-बिरंगी एलियन शकरमाउथ कैटफिश मछलियां मिली हैं। इस बार मछली का आकार पिछले साल की मछलियों से काफी बड़ा है। यह करीब सात इंच तक लंबी बताई जा रही है जबकि पिछले साल साढ़े तीन इंच लंबी मछली पाई गई थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 28 Jun 2021 11:23 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jun 2021 11:27 PM (IST)
गंगा में दोबारा से रंग-बिरंगी, एलियन, शकरमाउथ कैटफिश मछलियां मिली हैं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। गंगा में दोबारा से रंग-बिरंगी, एलियन, शकरमाउथ कैटफिश मछलियां मिली हैं। इस बार मछली का आकार पिछले साल की मछलियों से काफी बड़ा है। यह करीब सात इंच तक लंबी बताई जा रही है, जबकि पिछले साल साढ़े तीन इंच लंबी मछली पाई गई थी। वाराणसी के रमना गांव के बच्चों ने गंगा में इस मछली को पकड़कर प्रधानपति अमित पटेल को सौंप दिया, जिसके बाद यह इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुई।

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विशेषज्ञों ने इस पर चिंता जताते हुए कहा है कि गंगा में दोबारा से मिल रहीं मछलियां जल के पारितंत्र के लिए बेहद खतरनाक हैं। इनका दोबारा से मिलना बताता है कि गंगा जल तंत्र की बेहतरी के लिए कोई काम नहीं किया गया। मत्स्य विज्ञानी डा. अरविंद मिश्र ने बताया कि ये मछलियां अमेजन नदी में पाई जाती हैं। एक्वेरियम में जो मछलियां बड़ी हो जाती हैं उन्हें नदियों में छोड़ दिया जाता है। इस तरह की मछलियां गंगा के पारंपरिक जीवों के लिए खतरे की घंटी है। ये गंगा की सामान्य मछलियों के अंडे खा जाने के साथ ही उनके भोजन का भक्षण कर यदि नियंत्रण नहीं पाया गया तो समस्या विकराल भी हो सकती है।

गंगा में मिली थी अजीबोगरीब मछली

अगस्‍त-सितंबर 2020 में रामनगर में गंगा प्रहरी टीम को सूजाबाद के सामने गंगा नदी में रेस्क्यू करते समय मछुआरों के जाल में अजीबोगरीब मछली फंस गई। मछली लोगों के बीच कौतूहल का विषय बन गई। कोई भी मछुआरा इस मछली की पहचान नहीं कर सका। जाल में फंसी मछली के सिर के नीचे मुंह है। ऊपर के हिस्सा पर आंख है और शरीर पर कांटे उभरे हुए हैं। इस मछली का रंग भी बहुत ही अलग चटख नारंगी जैसा है। जिसकी पहचान नहीं हो पा रही। उस समय इसके क्लास स्‍तर की मछली होने का अंदेशा जताया जताया गया था। उक्त मछली की पहचान के लिए नमामि गंगे भारत सरकार तथा भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रुचि बडोला तथा वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. ए. हुसैन को जानकारी भेजी गयी थी।


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