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संगीनों के साये में होती है फसल की बोआई और कटाई, आजादी के बाद भी नहीं सुलझ सका उत्तर प्रदेश-बिहार का सीमा विवाद

त्‍योहारों के बाद अब खेतों में फसल लगभग तैयार है मगर बलिया जिले में बिहार की सीमा से सटे किसानों में बेचैनी है मंथन चल रहा है कि फसल तो तैयार है मगर काटने किस तरह जाएं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 30 Oct 2019 10:33 AM (IST)Updated: Wed, 30 Oct 2019 05:16 PM (IST)
संगीनों के साये में होती है फसल की बोआई और कटाई, आजादी के बाद भी नहीं सुलझ सका उत्तर प्रदेश-बिहार का सीमा विवाद
संगीनों के साये में होती है फसल की बोआई और कटाई, आजादी के बाद भी नहीं सुलझ सका उत्तर प्रदेश-बिहार का सीमा विवाद

बलिया, जेएनएन। त्‍योहारों के बाद अब खेतों में फसल लगभग तैयार है मगर बलिया जिले में बिहार की सीमा से सटे किसानों में बेचैनी है, मंथन चल रहा है कि फसल तो तैयार है मगर काटने किस तरह जाएं। किसान अपनी फसल काटने के लिए पुलिस और हथियार की चर्चा करें तो सोचने की बात है कि आखिर यह नौबत क्‍यों आन पड़ी। दरअसल उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा पर स्थित मझौवां में दियरांचल का विवाद देश के स्वतंत्र होने के 71 वर्ष बाद भी आज तक नहीं सुलझ सका है। प्रत्येक वर्ष खेतों की बोआई, जोताई व फसल कटान के समय दोनों प्रदेशों के किसानों की बंदूकें तन जाती हैं। वहीं कई बार हुए खूनी संघर्ष में अब तक दोनों प्रदेशों के आधा दर्जन किसानों की जान भी जा चुकी है और कईयों की जान जाते जाते बची है। इस सभी स्थितियों के बावजूद आज तक इस समस्या का स्थाई नहीं ढूंढा जा सका।

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केंद्र सरकार द्वारा 1971 में सीएल त्रिवेदी आयोग का गठन कर सीमा का निर्धारण कराने का निर्देश दिया था। त्रिवेदी आयोग द्वारा व्यापक सर्वेक्षण कर 1972 में उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा का निर्धारण कर सीमा पर पिलर गाड़कर चिन्हांकन कर दिया गया किंतु प्रदेश के किसानों को जानकारी नहीं होने के कारण बिहार के भू माफियाओं द्वारा सन 1981 के आसपास पिलर तोड़कर पुन: विवाद उत्पन्न कर दिया गया। जिस कारण भरसर, ओझवलिया, अगरौली, रेपुरा, राजपुर, नेमछपरा, उदवंत छपरा, हांसनगर, हल्दी, बाबूबेल, बादिलपुर, पोखरा, गायघाट, रुद्रपुर, बगहीं, गरयां, शुक्लछपरा, धर्मपुरा, मझौवां, पचरुखिया, नारायणपुर, दुर्जनपुर, मीनापुर, रिकनी छपरा, हरसेवक छपरा, सर्वा छपरा, उदईछपरा, श्रीनगर, नौरंगा, भुआल छपरा आदि दियारे में बोआई-कटाई के समय विवाद हर वर्ष गहराने लगते हैं। जिस कारण शासन-प्रशासन को दियरांचल में मजिस्ट्रेट, लेखपाल, कानूनगो, पुलिस, पीएसी की निगरानी में खेतों की बोआई व कटाई करानी पड़ती है।

उसके बावजूद दियरांचल में जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली कहावत हर वर्ष चरितार्थ होती है। प्रदेश का अति चर्चित दियारा हांसनगर 4200 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। वहां आज भी एक हजार एकड़ पर विवाद कायम है। वहीं जवहीं दियारे में सात हजार एकड़ खेत उत्तर प्रदेश व छह हजार बिहार सीमा में पड़ता है। जिस कारण इस गांव गांव के लोगों में भी आपसी विवाद कायम है। बाबूबेल दियारे में 100 बीघा खेतों पर आज भी विवाद कायम है। हालांकि मामला न्यायालय में लंबित होने के कारण शासन-प्रशासन मात्र टरकाऊ नीति अपनाते हैं। जिससे विवाद का कोई स्थाई समाधान नहीं मिल पाता है। उल्लेखनीय है कि बिहार के बक्सर, छपरा और बलिया के उच्च अधिकारियों की बैठक हर वर्ष बोआई व कटाई के समय होती है किंतु बैठक में लिए गए मुख्य निर्णय फसल कटाई के बाद धूल फांकने लगती है। किसानों ने इसको लेकर शासन -प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करते हुए सीमा विवाद की स्थाई समाधान के लिए केंद्र सरकार से मांग की है।


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