काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : अग्नि को समर्पित अग्निश्वर घाट
वाराणसी में गंगा की लहरों पर जहां हिमालय से लेकर आस्था गंगा सागर तक हिलोरें लेती है वहीं अग्निश्वर घाट भी अपने महत्व और अस्तित्व को चौरासी घाटों के बीच बचाए हुए है।
वाराणसी : गंगा की लहरों पर जहां हिमालय से लेकर आस्था गंगा सागर तक हिलोरें लेती है वहीं गंगा घाटों पर भी संस्कृति और संस्कार एकाकार होते हैं। पंच तत्वों को भी समर्पित घाट काशी में प्रमुख चौरासी घाटों का हिस्सा हैं। वेब सीरीज के क्रम में आज जानिए काशी के प्रमुख गंगा घाटों के इतिहास के क्रम में आज अग्निश्वर घाट और उसके महत्व और महात्म्य की वजह। आजादी के बाद गंगा घाटों को सजाने संवारने के क्रम मे सन साठ के दशक में राज्य सरकार ने कई घाटों को पक्का करने के क्रम में इसका भी जीर्णोद्धार किया गया। इससे पूर्व इसका काफी हिस्सा कच्चा था और माना जाता है कि यह गणेश घाट का ही छूटा हुआ भाग हुआ करता था। इतिहास काल क्रम में कई ग्रंथों में भी इसका अस्तित्व स्थानीय लोग बताते हैं। मान्यता है कि घाट पर ही अग्निश्वर शिव का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित होने के कारण इसका नाम अग्निश्वर घाट पड़ा। जबकि घाट के समक्ष गंगा में स्थानीय पुरोहित अग्नितीर्थ की मान्यता बताते हैं। उनका मानना है कि लिंगपुराण में काशी की अष्टायतन की शिव यात्रा इसी घाट पर स्नान करने के बाद अग्निश्वर शिव के दर्शन करने से शुरू होती है तभी यह पुण्य फलदायी होता है। वहीं घाट पर ही अन्य प्रमुख मंदिरों में गणेश जी का मंदिर नागेश विनायक और उपशान्तेश्वर शिव मंदिर भी काफी पुराना है। पुरनिए बताते हैं कि पूर्व में घाट पर लकड़ी और गंगा के बालू का कारोबार होता था जिसे शासन ने बाद में प्रतिबंधित कर दिया गया है। प्राचीन काल से ही घाट का धार्मिक महत्व होने से यहां गंगा और उससे जुडे़ अन्य आयोजन प्रमुखता से होते हैं। गंगा दशहरा सहित गणेश चतुर्थी आदि धार्मिक दिवसों पर आस्थावानों की अच्छी खासी भीड़ होती है। हालांकि घाट की पहचान अब वहां मौजूद होटल की वजह से ही अधिक है।