Birth Anniversary : सुजीत कुमार काशी आते तो मुंबइया ग्लैमर का कलेवर छोड़ बनारसी सांचे में ढल जाते
चरित्र अभिनेता कन्हैया लाल और मौसी फेम लीला मिश्रा के बाद मुंबई की मायानगरी में बनारस की शोहरत के अलमबरदार नवापुरा निवासी सुजीत कुमार ही रहे। व्यक्तित्व व बेमिसाल अभिनय क्षमता के दम पर सुजीत प्राय हर दूसरी या तीसरी फिल्म के अहम किरदार हुआ करते थे।
वाराणसी [कुमार अजय]। अबे... शमशेरवा रुक सा... पहिले पाकेट का कैश हाथे पर धर, तब लंका से आगे बढ़। तड़कड़ी-भड़कती इस ललकार से गार्जियन की अड़ी (अब बस यादें ही शेष) पर चाय पीने कार से उतरा सूटेड-बूटेड सजीला नौजवान। पहले तो सिटपिटाता है, फिर तुरंत ही जेब से निकाली कुछ रकम हड़काने वाले शख्स की थगली (जेब) में ठूंस तुरंत उस दबंग के गले लग जाता है। मुतमइन रहें, यह कोई छिनैती की वारदात नहीं। बरसों से बिछड़े दो यारों की दोस्तबाजी थी। खाली काशिकाई अंदाज व बनारस मस्तमिजाजी थी। लूट गया शख्स था कोई चार दशकों तक फिल्मी दुनिया के रुपहले पर्दे पर अपने दम-बूते छाये रहने वाले सदाबहार अभिनेता बनारस निवासी सुजीत कुमार (मूल नाम शमशेर बहादुर सिंह) और रंगदारी वसूलने वाले छिनैत थे उनके अजीज दोस्त व जिंदादिल पत्रकार आनंद चंदोला (अब दिवंगत), जिन्हें सारा शहर चचा के नाम से पुकारता था।
लगभग 30-35 साल पुरानी इस घटना को याद करते हुए भाजपा नेता और सुजीत कुमार के चिरपरिचित शुभेच्छुओं में शामिल अशोक पांडेय भावुक हो जाते हैं। सुजीत कुमार की जयंती सात फरवरी की पूर्व पर वे श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी चुनिंदा फिल्मों की सूची पलटने के साथ उनकी बेफिक्री और बेलौस मिजाजी की एक और कथा सुनाते हैं। वाक्या उस दौर का है, जब सुजीत कुमार मुंख कैंसर के इलाज के लिए मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थे। अन्य बनारसी शुभेच्छुओं के साथ उन्हें देखने पहुंचे अशोक पांडेय बताते हैं कि अपने दुख-तकलीफ की चर्चा के बजाय सुजीत कोई दस मिनट तक लंका वाली चचिया के कचौड़ी की कथा सुनाते रहे। बनारसी माटी और गंगा के पानी की तासीर में कितना दम है, यह बगैर बोले सिर्फ अपने सब्र की ताकते के जरिए समझाते रहे।
कन्हैया लाल के बाद फिल्म नगरी में बुलंद किए रखा बनारसी झंडा
चरित्र अभिनेता कन्हैया लाल और मौसी फेम लीला मिश्रा के बाद मुंबई की मायानगरी में बनारस की शोहरत के अलमबरदार नवापुरा निवासी सुजीत कुमार ही रहे। अपने सुदर्शन व्यक्तित्व व बेमिसाल अभिनय क्षमता के दम पर सुजीत क्रमश: 60-70 व 80 के दशकों में प्राय: हर दूसरी या तीसरी फिल्म के अहम किरदार हुआ करते थे। विदित चरित्रों को जीवंत करते हुए सुजीत ने फिल्म जगत को हिंदी व भोजपुरी की दो सौ से भी अधिक फिल्मों का उपहार दिया। वैसे तो उन्होंने सिनेमाई दुनिया के सभी मशहूर निर्देशकों के साथ काम किया, किंतु रामानंद सागर, शक्ति सामंत व सावन कुमार टाक की फिल्मों में उनके लिए एक भूमिका हमेशा पहले से ही तय हुआ करती थी। अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, राजकुमार, जितेंद्र, देवानंद, ऋषि कपूर व नाना पाटेकर के साथ उनके बेजोड़ किरदार हमेशा याद किए जाएंगे। खासकर आराधना, आंखें, तिरंगा, ग्रेट गैंबलर, जानी मेरा नाम में क्रमश: राजेश खन्ना, धर्मेंद्र व राजकुमार के अलावा क्रांतिवीर में पुलिस कमिश्नर के रूप में उनका अभिनय यादगार बन गया। फिल्म ललकार में उनका अभिनय खूब सराहा गया।
भोजपुरी फिल्मों का धमाल व पुरबिया हीरो का कमाल
पूर्वांचल की माटी में लोट-पोट कर मुंबई के आलीशान बंगले तक पहुंचे, सुजीत कुमार ने सही मायनों में भोजपुरी फिल्मों को ग्लैमर की चमक-धमक दी। बिदेसिया व दंगल उनकी सुपर-डुपर फिल्मों की फेहरिस्त में शामिल थीं। इसके अतिरिक्त पान खाये सैंया हमार, पतोह-बिटिया, गंगा जइसन भैजी हमार आदि फिल्मों ने सिनेमाहाल के टिकट विंडो पर जबरदस्त भीड़ जुटाई। बनारस ही निकलीं कुमकुम व पद्मा खन्ना जैसी अभिनेत्रियों के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी। कई भोजपुरी फिल्मों का उन्होंने स्वयं निर्देशन भी किया। हीरो व चरित्र अभिनेता के अलावा सुजीत ने कुछ फिल्मों में खलनायक का रोल भी निभाया। लोग उनमें पुराने जमाने के सक्षम खलनायक केएन सिंह की छवि देखते थे, जो सिर्फ आंखों की हरकत से खल चरित्र को जीवंत कर दिया करते थे। अंतिम दौर में उन्होंने भोजपुरी फिल्मों में नए-नए आए कुणाल के साथ अभिनय की जोरदार जुगलबंदी की।
प्रोड्यूसर के रूप में भी हिट रहे सुजीत
उम्र की ढलान पर सुजीत ने कुछ नायाब फिल्में प्रोड्यूस भी कीं। दरार, खेल और चैंपियन फिल्में हमेशा याद रखी जाएंगी। निर्देशक अब्बास-मस्तान के साथ बनाई गई फिल्म दरार उनका आखिरी प्रोडक्शन साबित हुई। इस फिल्म ने ऋषि कपूर व जूही चावला को मशहूरी तो दी ही, अरबाज खान जैसे नए कलाकार के पैरों के नीचे जमीन भी हासिल कराई। यारबाजी में सुजीत का कोई जोड़ न था। राजेश खन्ना, जितेंद्र व राकेश रोशन के साथ उनकी निभती थी। जिम में जाकर दम-खम की प्रतिस्पर्धा के उन दिनों को कपूर खानदान के वर्तमान मुखिया रणधीर कपूर आज भी शिद्दत से याद करते हैं।