काशी विद्यापीठ में समाजवाद की नर्सरी आचार्य नरेंद्रदेव की देन, कूदे थे स्वतंत्रता आंदोलन में
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में समाजवादी विचारधारा की शुरुआत आचार्य नरेंद्र देव ने ही की थी। विद्यापीठ में समाजवाद की नर्सरी उन्हीं की देन है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी साहित्यकार पत्रकार शिक्षाविद् व काशी विद्यापीठ पूर्व कुलपति व आचार्य नरेंद्रदेव आम आदमी के लिए बेहद सहज और सरल थे।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में समाजवादी विचारधारा की शुरुआत आचार्य नरेंद्र देव (जन्म : 31 अक्टूबर 1889, निधन : 19 फरवरी 1956) ने ही की थी। विद्यापीठ में समाजवाद की नर्सरी उन्हीं की देन है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद् व काशी विद्यापीठ पूर्व कुलपति व आचार्य नरेंद्रदेव आम आदमी के लिए बेहद सहज और सरल थे। आदर्श और विचारधारा के लिए लड़ना और उस विचारधारा को अपने ज्ञान और सोच से सींचकर आम जीवन में आजमाना यह कार्य कोई नहीं आचार्य नरेंद्रदेव ने ही किया था।
आचार्य नरेंद्र देव का जन्म 31 अक्टूबर 1889 को सीतापुर में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता बलदेव प्रसाद नामी-गिरमी अधिवक्ता थे। साथ ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। पिता का प्रभाव आचार्य नरेंद्र देव के भी पड़ा। आचार्य नरेंद्र देव की प्रारंभिक शिक्षा सीतापुर में ही हुई। बीए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया। इसके बाद पुरातत्व पढ़ने के लिए वह क्वींस कालेज आ गए। वर्ष 1913 में उन्होंने संस्कृत से एमए, व एलएलबी किया। पढ़ाई करते हुए ही नरेंद्र देव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। लिहाजा लोकमान्य तिलक, आरसी दत्त व जस्टिस रानाडे जैसे क्रांतिकारियों के प्रभाव में रहे। बहरहाल पिता की इच्छा को देखते हुए उन्होंने फैजाबाद में वकालत भी शुरू की। वर्ष 1915 से 1920 तक उन्होंने वकालत की।
इस बीच असहयोग आंदोलन शुरू हो गया। इसे देखते हुए वह वकालत छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। बाद में शिव प्रसाद गुप्त के आमंत्रण पर वह विद्यापीठ आ गए। वर्ष 1926 में भारत रत्न डा. भगवानदास के त्यागपत्र देने के बाद उन्हें काशी विद्यापीठ का आचार्य बनाया गया। 1934 में जय प्रकाश नारायण के सुझाव पर सोशलिस्ट पार्टी के उद्घाटन सत्र में नरेंद्र देव को चेयरमैन बनाया गया। इसके बाद वे जीवन भर समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे। उन्होंने संघर्ष व समाज नामक साप्ताहिक विद्यापीठ व समाज नामक त्रैमासिक, जनवाणी नामक मासिक पत्रिका का भी संपादन किया। आचार्य नरेंद्र देव ईमानदारी और नैतिकता को सर्वोच्च स्थान पर रखते थे। जब कांग्रेस से मतभेद हुआ तो उन्होंने नैतिकता के आधार पर विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। आजीवन राष्ट्रीयता और समाजवाद को प्रेरणास्रोत मानने वाले आचार्य नरेंद्र देव का निधन 19 फरवरी 1956 में हुआ।