Gyanvapi Case: तस्वीरें और संस्कृत में लिखे शब्द बता रहे हैं ज्ञानवापी का सच...
Gyanvapi Case वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर में हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के सर्वे में हिंदू मंदिर होने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। अदालत के आदेश पर गुरुवार को सभी पक्षकारों को 839 पन्नों की रिपोर्ट की प्रिंटेड कापी सौंप दी गई। मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने रिपोर्ट मिलने के बाद इसकी 20 पेज की फाइंडिंग रिपोर्ट के आधार पर प्रेस वार्ता की।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। ज्ञानवापी की दीवारों पर उकेरी गईं हिंदू धर्म से संबंधित तस्वीरें और लिखे गए शब्द बता रहे हैं कि यह पूर्व में विशाल मंदिर रहा होगा। एएसआई की सर्वे रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार एक बीम पर नागरी लिपि में ‘कासी’ लिखा है। यह भी लिखा है कि यह 17वीं शताब्दी का है। इसकी तस्वीरें भी रिपोर्ट में हैं।
एक अवशेष पर संस्कृत में श्रीमच्छा, पा भृगुवास, वद्विजातिश्च, आय अर्जानी, णरायै परोप, जातिभि: धर्मज्ञ: अंकित है। एएसआइ ने इसे 16वीं शताब्दी का अवशेष बताया है। इसी प्रकार एक लिंटेल बीम पर संस्कृत में यो न मा महाचद लिखा मिला। एक दीवार पर संस्कृत में रुद्राद्या व श्रावना अंकित है।
ज्ञानवापी का पुरातन इतिहास
संस्कृत में लिखे ये समस्त शब्द ज्ञानवापी के पुरातन इतिहास को दर्शा रहे हैं। एक दीवार पर चार पंक्तियां गायब हैं, लेकिन एक शब्द ‘ग ‘ स्पष्ट रूप से दिख रहा है। अन्य पंक्तियों के मिटने की वजह इनका खंडित होना बताया गया है।मिले तेलुगु के शब्द
इसी प्रकार मुख्य द्वार पर उत्तरी दिशा में तेलुगु में कई शब्द लिखे मिले हैं। रिपोर्ट में इनका अनुवाद भी किया गया है। महा, (शि). न दीपनु, कुनु, हद.म , मवि (रति), डुहच्च, र का उल्लेख है। इसी प्रकार स्याकस्य, लये, कान्होलषुम, देशोकुंकाल, मंड, ल्यांकला, ला लिखे मिले हैं।
मिले हिंदू मंदिरों के शिलालेख
विष्णु शंकर जैन ने बताया कि एएसआई सर्वे के दौरान ज्ञानवापी में कई शिलालेख देखे गए। रिपोर्ट में सर्वेक्षण के दौरान 34 ऐसे शिलालेखों के मिलने की बात कही गई है जो पहले से मौजूद हिंदू मंदिरों के हैं और जिनका मौजूदा ढांचे के निर्माण और मरम्मत के दौरान दोबारा उपयोग किया गया है। इनमें देवनागरी, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों के शिलालेख भी शामिल हैं।
संरचना में पहले के शिलालेखों के पुन: उपयोग से पता चलता है कि पहले की संरचनाओं को नष्ट कर दिया गया था और उनके हिस्सों को मौजूदा संरचना के निर्माण में फिर से उपयोग किया गया। इन शिलालेखों में देवताओं के तीन नाम जैसे जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर पाए गए हैं। देवनागरी, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों के शिलालेख भी मिले हैं।
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