आपातकाल के 45 साल : विपक्ष एकजुट था और कांग्रेस में सिर्फ इंदिरा ही थीं, जानिए क्या था पूरा मामला
मार्च 1971 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी। 518 सीटों में से कांग्रेस को दो तिहाई से भी ज्यादा अर्थात 352 सीटें मिली थी।
वाराणसी, जेएनएन। मार्च 1971 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी। 518 सीटों में से कांग्रेस को दो तिहाई से भी ज्यादा अर्थात 352 सीटें मिली। हालांकि लगातार बंटने से पार्टी की संरचना कमजोर हुई थी। परिस्थिति ऐसी बन गई थी कि पार्टी के पास इंदिरा गांधी पर निर्भर होने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं रह गया था। वहीं दूसरी ओर देश में बढ़ रहे असंतोष ने विपक्ष को एक करना शुरू कर दिया था। इंदिरा गांधी की छवि बैंकों के राष्ट्रीयकरण और राजपरिवारों को मिलने वाले भत्ते खत्म करने जैसे फैसलों से गरीबों के समर्थक वाली हो गई थी। इस पूरे काल में वे अपनी छवि को लेकर बेहद सतर्क थीं। उनकी कोशिश थी कि वे गरीबों की मसीहा के रूप में सामने आएं। इसीलिए उन्होंने हिंदी के कवि श्रीकांत वर्मा की मदद ली थी। उन्होंने गरीबी हटाओ का नारा उनके लिए तैयार किया था। लेकिन सारी तैयारी के बाद भी उनके सामने राजनारायण आ गए।
इमरजेंसी के बीच बाइक से सोनभद्र गए थे जार्ज फर्नाडीज
समाजवादी जनसभा के नेता जार्ज फर्नांडीज, राजनारायण व मधुलिमये थे। इमरजेंसी लगने के बाद जार्ज बनारस आए और गांधीयन इंस्टीट्यूट राजघाट में रूके। उस दौर में प्रमोद मिश्र से जार्ज फर्नाडीज की मुलाकात हुई। उनको येज्डी से सोनभद्र के हाथीनाला तक पहुंचाया था। वहां से कुछ उनके परिचित उनको कहीं अन्यत्र ले गए। आपातकाल में हमारी मुख्य भूमिका जेल की व्यवस्था संभालनी थी। मैैं नाम बदलकर लोगों से जेल में मुलाकात करता। गिरफ्तार हुए लोगों के घर से जो भी सामान आता मैैं उसे जेल तक ले जाकर उसे संबंधित व्यक्ति के पास पहुंचा देता। बाहर की खबर भी उनसे साझा करता था। सबसे खास बात यह थी कि इतना सब कुछ करने के बाद भी मुझे कोई गिरफ्तार नहीं कर पाया। उनके आने की सूचना से उस समय के बीएचयू छात्रसंघ अध्यक्ष भूमिगत हो गए थे।