कोटवां पशु आश्रय स्थल में गायों की दुर्दशा, गंदगी व कम भोजन से एक दर्जन से अधिक बीमार
लोहता स्थित कोटवां पशु आश्रय स्थल में गायों की दुर्दशा है। उनके रहने के नाम पर सिर्फ चारदीवारी है जिसे कैदखाना समझें।
वाराणसी, जेएनएन। लोहता स्थित कोटवां पशु आश्रय स्थल में गायों की दुर्दशा है। उनके रहने के नाम पर सिर्फ चारदीवारी है, जिसे कैदखाना समझें। आश्रय स्थल में पसरी गंदगी के बीच गो-वंश रहने के लिए मजबूर हैं। उन्हें पेटभर चारा भी नहीं मिल रहा। एक गाय को सिर्फ तीन किलो भूसा मिलता है। इलाज का सही इंतजाम नहीं है। इसका दुष्परिणाम है कि पशु आश्रय स्थल में एक माह में 12 गायें मर गई। एक दर्जन से अधिक बीमार गायें देखरेख के अभाव में अंतिम सांसें गिन रही हैं।
कोटवां पशु आश्रय स्थल में 125 गायें हैं। एक माह पूर्व इनकी संख्या 137 थी। बीमार पशुओं के मरने से संख्या तेजी से कम हो रही। पंचायत की ओर से तीन पशुपालकों को पांच हजार मासिक मेहनताना पर नियुक्त किया गया है। ब्लाक स्तर से छह सफाई कर्मी भी नियुक्त हैं, जो शिफ्टवार कार्य करते हैं। ब्लाक के पशु चिकित्सालय से चिकित्सक का रोजाना दौरा होता है। इसके बाद भी बीमार पशु ठीक नहीं हो रहे। गंदगी का आलम यह है कि दो मिनट पशु आश्रय स्थल में गुजारना मुश्किल है। ड्रेनेज की व्यवस्था नहीं होने से गंदगी बजबजा रही है। मच्छरों की भी भरमार है। प्रधान प्रतिनिधि मोहम्मद यासीन का कहना है कि एक पशु के चारे के लिए सिर्फ 30 रुपये मिलते हैं। जबकि एक किलो भूसा 9 से 10 रुपये में मिलता है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक गाय को तीन किलो से अधिक भूसा नहीं मिल रहा है।
देसी गाय (जेबू) के लिए तूड़ी अथवा सूखी घास या भूसा की मात्रा 4 किलो, संकर गाय व शुद्ध नस्ल की देसी गाय अथवा भैंस के लिए यह मात्रा चार से छह किलो तक होती है। इसके साथ पशु को दाने का मिश्रण दिया जाता है जिसकी मात्रा स्थानीय देसी गाय (जेबू) के लिए एक से 1.25 किलो तथा संकर गाय, शुद्ध नस्ल की देसी गाय या भैंस के लिए दो किलो रखी जाती है। पशु को खिलाने के लिए दाने का मिश्रण उचित अवयवों को ठीक अनुपात में मिलाकर बनाना आवश्यक है।
डीएम सुरेंद्र सिंह व अन्य अफसरों ने नजीर पेश करते हुए वेतन से 11 हजार रुपये पशु आश्रय केंद्र को दान में दिया है। जिलाधिकारी ने माना कि शासन के निर्देशानुसार प्रति गाय तय बजट कम है। इस बाबत शासन को अवगत कराया गया है। गोदाम होता तो कम रेट पर सीजन में भूसा की खरीद हो जाती, लेकिन ऐसा नहीं होने से अधिक दाम में चारा की खरीद हो रही है। उन्होंने दानदाताओं से अपील की है कि गोवंश के चारे के लिए आगे आएं।