जाति की गणित में गुम हुए असली मुद्दे
जागरण संवाददाता, उन्नाव : निकाय चुनाव अपने चरम पर है, लेकिन मुद्दे विहीन। प्रचार में निकले प्र
जागरण संवाददाता, उन्नाव : निकाय चुनाव अपने चरम पर है, लेकिन मुद्दे विहीन। प्रचार में निकले प्रत्याशी और समर्थक विकास पर विपक्ष को घेरते हैं, लेकिन जब बात उनके चुनावी मुद्दे की आती है तो सन्नाटा छा जाता है। किसी के पास भी कोई घोषणा पत्र नहीं है। गली-गली भटक रहे प्रत्याशी वोटरों के सामने केवल हाथ जोड़ कर मत मांगने तक सीमित हैं। उनकी हार जीत पर चर्चाएं हैं लेकिन जातीय गणित की जोड़ तोड़ पर। कोई ब्राह्मण मतदाताओं के आंकलन में लगा है तो कोई मुस्लिम वोटरों को जोड़ने की रणनीति बना रहा है। सबका अपना अपना हिसाब है।
निकाय चुनाव का मैदान फतह करने के लिए उम्मीदवारों ने ताकत झोंक दी है। मात्र आठ दिन बाद मतदाता उम्मीदवारों का भाग्य मतदान करके लिखेंगे। फिलहाल चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों ने अपनी ताकत झोंक रखी है। लेकिन चुनाव जोड़ तोड़ के जितने भी आंकलन किए जा रहे हैं। इस सब के बीच चौंकाने वाली बात यह है कि अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों के बीच चुनावी मुद्दा गायब है। पूर्व में कोई काम नहीं हुआ अधिकतर यह आरोप तो लगाते हैं लेकिन जब उनकी प्राथमिकताओं की बात होती तो वह उनके पास नहीं होती। रटा रटाया जुमला होता कि जो विकास अब तक नहीं हुआ उसको कराएंगे। लेकिन इश विकास के लिए किसी के पास अपना कोई एजेंडा नहीं है। बिना मुद्दे के चुनावी जीत का आधार क्या होगा इस सवाल के जवाब में हर कोई किसी के पास जातीय वोट बैंक का खाका जरूर तैयार है। चुनाव मैदान में किस्मत आजमाने उतरे उम्मीदवार फिलहाल बात शुरू होते ही वोटों की गणित और विपक्षियों के वोट बैंक का हिसाब तैयार कर देता है।
भाजपा ने ब्राह्मण पर दांव लगाया है। विपक्ष चुनाव मैदान में बसपा, रालोद के अलावा निर्दलीय ब्राह्मण उम्मीदवार की सेंधमारी से उसे कमजोर आंक रहा है। इसके लिए दूसरे दलों के लोग उन्हीं दलों के मठाधीशों की तरफ अपना ध्यान टिकाए हैं। दूसरी तरफ सपा ने पिछड़ी जाति की उम्मीदवार को टिकट दिया है। उसकी जीत का आधार भी पिछड़ी जाति के साथ सपा के मूल वोटर यादव और मुस्लिम पर टिका है। उनकी सारी जुगत कुछ दूसरे वर्ग के मतदाताओं का अपने खेमे में लेने पर है। जबकि विपक्ष उनके वोट बैंक पर कांग्रेस की सेंधमारी होने का दावा करके खुश है। कांग्रेस से क्षेत्रीय उम्मीदवार होने के कारण उसके सजातीय वोट का नुकसान विपक्षीय भाजपा के खाते में जोड़ रहे हैं। जबकि पूर्व के चुनावों में रनर रहने वाली कांग्रेस के खाते से मुस्लिम वोट बैंक को लोग फिसलकर सपा के खाते में होने गणित फिट कर रहे हैं। ऐसा ही कुछ बसपा प्रत्याशी के लिए कहा जा रहा है। अब चुनाव में जातिगत आंकड़ों का किसी को क्या लाभ मिलेगा यह तो मतगणना परिणाम ही बताएंगे, फिलहाल मुद्दों से भटकी चुनावी जंग में विभिन्न दल और जातियों के ठेकेदार प्रत्याशी के पक्ष में जातिगत समीकरण समझाकर अपनी जीत का ताना बाना बुन रहे हैं।