पिता राम की चतुरंगिनी सेना को हरा लव-कुश ने अयोध्या को दिया था संदेश
आशीष दीक्षित/अनिल कुमार पांडेय उन्नाव जब लव कुश ने श्री राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा परिय
आशीष दीक्षित/अनिल कुमार पांडेय, उन्नाव: जब लव कुश ने श्री राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा परियर में रोका था तो महर्षि वाल्मीकि को मालूम चल गया था कि घोड़ा छुड़ाने के लिए लव कुश का राम की चतुरंगिनी सेना से युद्ध होगा। ऐसे में लव कुश की जीत के लिए महर्षि ने बलखंडेश्वर मंदिर की स्थापना लव कुश से कराई थी। यह मंदिर आज भी आस्था का प्रतीक बना हुआ है।
त्रेतायुग में जब भगवान राम ने अवश्वमेध यज्ञ किया तो पूरे आर्यावर्त में अश्वमेध के घोड़े को किसी भी राजा ने नहीं पकड़ा था। चारों दिशाओं में भ्रमण करते हुए घोड़ा जब परियर से होता हुआ अयोध्या जाने लगा तो पावा के पास लव कुश ने घोड़े को पकड़ लिया। इस पर राम ने भरत को सेना लेकर घोड़े को छुड़ाकर लाने की आज्ञा दी थी। भरत हनुमान जी के साथ सेना को लेकर घोड़े को छुड़ाने निकल पड़े थे। राम की सेना चकलवंशी पहुंची और वहीं पर रुक कर भरत ने सेना को ठहरने का आदेश दिया। साथ ही युद्ध के पहले भगवान शिव की स्थापना कर आराधना करने बैठ गए। आज उस स्थान की बाबा भीमेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। शत्रु के बल को क्षीण करते बलखंडेश्वर महादेव
महर्षि वाल्मीकि को यह बात मालूम हुई की श्री राम की सेना घोड़े को छुड़ाने के लिए आ चुकी है तो महार्षि ने युद्ध में विजय पाने के लिए परिहरि में लव कुश के हाथों महादेव की स्थापना करा पूजा आरंभ करा दी और बलखंडेश्वर शिवलिग की स्थापना कराई। बलखंडेश्वर का तात्पर्य दुश्मन के बल को खंडित करना यानी कि राम की सेना के बल को खंडित करना था और वही हुआ। लवकुश ने भरत को दिव्यास्त्र से मूर्छित कर हनुमान जी को बंधक बनाकर आश्रम के वट वृक्ष से बांध दिया था। ऐसे में भगवान राम को घोड़े को छुड़ाने के लिए आना पड़ा। जब वह युद्ध करने आये तो महार्षि वाल्मीकि ने उनको बताया कि लव कुश उन्हीं के पुत्र हैं। परियर जानकी मंदिर के पुजारी सुशील तिवारी का कहना है कि बलखंडेश्वर महादेव के दर्शन से मनोकामना पूरी होती है।