कूड़े के ढेर से तलाश ली जिंदगी की राह
जागरण संवाददाता, उन्नाव : गरीबी के कारण पढ़ाई की उम्र में सुनीता ने वह जिम्मेदारी संभाली
जागरण संवाददाता, उन्नाव : गरीबी के कारण पढ़ाई की उम्र में सुनीता ने वह जिम्मेदारी संभाली जिसके लिए शायद हर माता पिता एक लड़के की चाह रखते हैं। शहर के निवासी अशर्फी की मुंहबोली बेटी 14 वर्षीय सुनीता उर्फ बिट्टो के हौसले को गरीबी भी न तोड़ सकी। पिता और मां की बीमारी के कारण परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया, तो दिन में पढ़ाई और रात को कूड़े के ढेर से दफ्ती आदि तलाश कर उसने परिवार के लिए कुछ धनार्जन का फैसला लिया। इसी के बाद से वह रात के अंधेरे में रिक्शा लेकर दफ्ती इकट्ठा करती है। अपनी जीतोड़ मेहनत से वह छोटे भाई बहनों की जरूरतें पूरी करती है और मां बाप का इलाज भी।
अशर्फी लंबे अर्से से बीमार है। उसका भाई प्यारेलाल और भाभी गुड़िया भी बीमार रहते हैं। गुड़िया के चार बच्चे हैं। जिसमें सुनीता सबसे बड़ी है। बीमारी के कारण अशर्फी हनुमान मंदिर के बाहर लोगों के सामने हाथ पसारने लगा। मुंह बोले पिता को दूसरों के सामने हाथ फैलाता देखना सुनीता को काफी अखरा। उसने हिम्मत जुटाई और माता पिता का सहारा बन गरीबी को मात देने की ठान ली। इसी के बाद से उसने कूड़े के ढेर से परिवार का जीवन यापन करने का रास्ता तलाश लिया। वह अपने तीन छोटे भाई बहनों, मुंह बोले पिता और मां को रिक्शा ठेलिया पर बैठा कर रात के अंधेरे में शहर की मुख्य बाजारों में घूमती है। दुकानों के बाहर पड़े कूड़े से वह दफ्ती और गत्ता बीनती है। रात भर उसे इकट्ठा करने के बाद सुबह कबाड़ी के यहां बेचकर जो पैसा मिलता है उसे अपने परिवार पर खर्च करती है। सुनीता के अंदर स्वाभिमान भी कूट-कूट कर भरा है, अगर कोई उससे नाम पता पूछता है तो वह अपने बीमार मां-बाप को कुछ बताने से रोक देती है। अन्न्पूर्णाधाम से लेकर गांधीनगर तिराहे के मध्य रात 8 बजे 12 बजे तक वह रोज देखी जाती है। उसने कहा कि बीमारी ने परिवार तबाह कर दिया। मुंह बोले पिता के सहारे घर चलता था वह भी लाचार हो गए। मां-बाप भी हम चार भाई बहनों का खर्च उठाने में अक्षम हैं। उनकी मजबूरी ने मुझे साहस दिया और मैं उनका सहारा बनने का प्रयास कर रही हूं। मां गुड़िया का कहना था कि मेरे लिए तो सुनीता बेटे से अधिक है। उसकी मेहनत का ही परिणाम है कि हम लोग ¨जदा हैं।