रेणु की स्मृति में साहित्यकारों का संगम
सुलतानपुर एक ऐसा साहित्यकार जिसका मैला आंचल हिदी जगत की पताका बनकर लहराया। जिसने बताया
सुलतानपुर: एक ऐसा साहित्यकार जिसका 'मैला आंचल' हिदी जगत की पताका बनकर लहराया। जिसने बताया कि 'पलटू बाबू रोड' पर 'कितने चौराहे' हैं। 'एक अच्छे आदमी' की तरह उसने साहित्य साधना की और रिपोर्ताज में 'वन तुलसी की गंध' सबको मोहित करती है। चार मार्च को जन्मे इस कालजयी कलमकार को हम फणीश्वर नाथ रेणु के नाम से जानते हैं। सरस्वती के इस साधक की स्मृति में सुलतानपुर के कुरंग गांव में गुरुवार साहित्यकारों का संगम हुआ। प्रख्यात कथाकार व उपान्यासकार शिवमूर्ति ने गोष्ठी का आयोजन करके उन्हें नमन किया। देश के विभिन्न अंचलों से आए रचनाकारों ने रेणु के जीवन संघर्ष पर विस्तार से चर्चा की। युग तेवर के संपादक कमल नयन पांडेय ने कहा कि रेणु के कथा साहित्य में लोकचित्त की जैसी व्यंजना की गई है, वैसा हिदी का कोई कथाकार नहीं कर सका है। उनकी कहानियों में बिखरते गांव को सहेजने का भी उपक्रम दिखाई पड़ता है। दिल्ली से आए उपन्यासकार व कहानीकार संजीव ने रेणु के जीवन व संघर्ष पर चर्चा की। रेणु के लेखन में राजनीतिक दलों के क्षरण पर भी चिता दिखती है। आलोचक वीरेंद्र यादव ने प्रेमचंद्र की परंपरा का पाठ प्रस्तुत करते हुए रेणु को उससे अलग कथाकार बताया। पत्रकार अखिलेश ने कहा कि रेणु की कहानियों और उनके उपन्यासों में देशज आधुनिकता व देशज यथार्थ की अभिव्यक्ति हुई। केएनआई के प्राचार्य डॉ. राधेश्याम सिंह ने रेणु के कथा साहित्य को परखने के लिए बने बनाए आलोचना के ढांचे को तोड़ने की बात कही। उन्होंने कहा कि इसके लिए नया प्रतिमान रचना होगा। राणा प्रताप पीजी कालेज के हिदी विभागाध्यक्ष डॉ. इंद्रमणि कुमार ने कहा कि उन्हें आंचलिक कथाकार कहना, उनके साथ न्याय नहीं होगा। रेणु ने अपने अंचल की बात तो की है, लेकिन उनके साहित्य में पूरे उत्तर भारत के गांव व किसानों का चित्रण हुआ है। गोष्ठी में फैजाबाद के डॉ. अनिल सिंह, लखनऊ से अरुण सिंह, सुलतानपुर से डॉ. डीएम मिश्र, कौशल किशोर, राकेश ने रेणु की लेखनी के आयामों पर चर्चा की। अंत में शिवमूर्ति ने सब के प्रति आभार व्यक्त किया।