सगंध पौधों की खेती से महकेगा किसानों का जीवन
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सुलतानपुर: परंपरागत खेती में पीढि़यां खपा चुके किसान अब सगंध पौधों की खेती में नए मानक गढ़ रहे हैं। जिले के सैकड़ों किसान खस, जावा, लेमन, रेशा घास, जेरेनियम और रोजमेरी की व्यावसायिक खेती कर आर्थिक उन्नति की ओर बढ़े हैं। इस खेती से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आधारभूत पोषण मिल रहा है। सरकारी अनुदान और निजी क्षेत्र के प्रोत्साहन की राह न देखकर इन किसानों ने एकल प्रयास कर तेल आसवन की इकाई स्थापित की।
धनपतगंज ब्लॉक के करनाईपुर, पीपी कमैचा के छापर, सूरापुर के डीह असरफाबाद के सुधाकर ¨सह, कूरेभार गौहानी के लालजी वर्मा तक बंधुआ कला के राम प्रसाद आदि ने जावा घास, रेशा घास, रोजमेरी और सतावर का उत्पादन किया है। तकरीबन एक दशक पूर्व प्रायोगिक तौर पर विनय और राम बहादुर ने इस खेती की शुरुआत की थी। केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) से राम बहादुर ने सगंध पौधों की खेती का प्रशिक्षण लिया था। अब भी इन किसानों को सीमैप प्रोत्साहित कर रहा है और समय-समय पर आवश्यक सलाह देता है। उत्पाद की उपयोगिता
सगंध पौधों से प्राप्त होने वाले तेल का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों इत्र, साबुन, क्रीम बनाने में किया जाता है। सीरप और नशा रहित पेय पदार्थों में इन सगंध पौधों के उत्पाद बड़ी मात्रा में प्रयोग किए जाते हैं। मांग इतनी अधिक है कि उत्पादकों को अपनी फसल से प्राप्त तेल की बिक्री में किसी तरह की अड़चन नहीं आती। विदेशों तक हो रही आपूर्ति
सीमैप के वैज्ञानिक डॉ संजय कुमार ने कहा कि जिले में उत्पादित जावा घास, पामारोजा, खस की फसलों से मिलने वाले तेल का उपयोग बहुराष्ट्रीय कंपनियां कर रही है। अधिकतर उत्पाद लखनऊ स्थित एक समिति के जरिए क्रय कर लिया जाता है। अब इन्हें विदेश भेजने की भी तैयारी चल रही है। वहीं कृषक राम बहादुर ने बताया कि आसवन में कुछ कठिनाई आती है। परंपरागत मेंथा टंकी से आसवन में नुकसान हो रहा है। आधुनिक आसवन इकाई बेहद महंगी है।