पराली जलाने पर रोक लगाने के नहीं हो रहे कारगर उपाय
सुलतानपुर : पराली जलाने पर लगी रोक के बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता के चलते यह कुप्रथा खत्
सुलतानपुर : पराली जलाने पर लगी रोक के बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता के चलते यह कुप्रथा खत्म नहीं हो रही है। धान की कटाई तेजी से मशीनों के जरिए होने जा रही है। ऐसे में बोआई के लिए आतुर किसान फिर फसल अवशेष जलाएंगे। इसके दूरगामी दुष्परिणामों से न तो किसानों को सचेत किया जा रहा है और न ही प्रशासन अवशेष प्रबंधन पर कोई ठोस उपाय कर रहा है।
पराली जलाने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचने के साथ जमीन की उर्वरता भी घट रही है। इस पर लगी रोक फाइलों तक सिमटी है। जिले में बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है। कटाई का कार्य शुरू हो गया है। अधिकतर किसान धान की कटाई मशीन से कराते हैं। अवशेष खेत में ही जला देते हैं। ऐसे में मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। विभाग और जिम्मेदारों की ओर से इस बार पराली न जलाई जाए इसकी व्यवस्था नहीं की गई है
घातक है अवशेषों का जलाना :
आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ आरआर सिंह कहा ने कि फसल अवशेष जलाने से अगली पैदावार में 15 से 20 प्रतिशत की कमी आती है। एक टन पराली जलने से 5.5 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फासफोरस और तकरीबन 1.2 किग्रा सल्फर जैसा पोषक तत्व मिट्टी से नष्ट हो जाता है। इसके जलने से कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों से आसमान में धुंध बनी रहती है। इससे आंख व सांस संबंधी बीमारियां का खतरा रहता है।
गठित की गई टीम
अवशेषों को खेतों में जलाने पर रोक और एनजीटी के कड़े रुख के बावजूद ऐसा करने वालों पर अभी तक न कोई जुर्माना लगाया गया है न इसकी रोकथाम के लिए कठोर कदम उठाए गए हैं। इस बाबत उप निदेशक कृषि एसके शाही ने बताया कि एडीएम की अगुवाई में तहसील और ब्लॉक स्तरीय टीमें गठित की गई हैं। पराली जलाने वालों पर निगरीनी रखी जाएगी।