Move to Jagran APP

खाद न पानी, बदहाल किसान व किसानी

सुलतानपुर: खाद, बीज, सिचाई की किल्लत के बाद फसलों के वाजिब मूल्य पाने के मोर्चों पर जूझना जिले के कि

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Apr 2019 10:50 PM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 10:50 PM (IST)
खाद न पानी, बदहाल किसान व किसानी
खाद न पानी, बदहाल किसान व किसानी

सुलतानपुर: खाद, बीज, सिचाई की किल्लत के बाद फसलों के वाजिब मूल्य पाने के मोर्चों पर जूझना जिले के किसानों की विवशता बन गई है। खेती यहां मजबूती की बजाय मजबूरी बनती जा रही है। बीते पांच साल किसानों के लिए खुशी कम गम अधिक देने वाला ही रहा। बोआई के समय राजकीय बीज भंडारों से बीज नदारद रहता है। खाद के लिए भी बाजारों की ओर रुख करना पड़ता है। नहरें भी छलावा साबित हो रही हैं। अधिकांश के टेल तक पानी न पहुंचने को लेकर किसान आंदोलित रहते हैं। प्रतिकूलताओं के बावजूद जुझारू किसान डटकर जब रिकार्ड उत्पादन करते हैं तो उन्हें उचित मूल्य, बाजार व भंडारण से जूझना पड़ता है।

loksabha election banner

जिले के तकरीबन 90 प्रतिशत किसान लघु और सीमांत श्रेणी के हैं। परंपरागत खेती के तहत रबी और खरीफ की फसलें ली जाती हैं। अपेक्षित प्रशासनिक सहयोग किसानों को नहीं मिलता और खेती प्रगतिशील तथा व्यवसायिक और आधुनिक नहीं हो सकी है।

----------

सिचाई के साधनों की किल्लत

कागजों पर जिले में नहरों का संजाल है। चार खंडों के जरिए 196 नहरें जिले में प्रवाहित हैं। चार दशक पुरानी इन नहरों में पानी का बहाव अनियमित रहता है। कुल 256 ड्रेनों में टेल तक पानी नहीं पहुंचता। शासन और प्रशासन यह आंकड़ा दर्शाकर पीठ थपथपा लेता है कि जिले की 48 फीसदी फसलों की सिचाई नहरों के जरिये हो रही है। राजकीय नलकूपों की स्थिति और भी दयनीय है। सार्वजनिक क्षेत्र में कुल 548 नलकूप हैं, जिनमें 103 अर्से से निष्प्रयोज्य हैं।

----------------

फसल का सही मूल्य नहीं

गेहूं और धान का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाले किसानों को उनकी फसलों का वाजिब मूल्य नहीं मिलता। अन्नदाता सरकारी खरीद के भरोसे रहते हैं और विवश होकर उन्हें बिचौलियों और व्यवसाइयों को अपना खाद्यान्न बेचना होता है। समर्थन मूल्य पर खरीद में भ्रष्टाचार का घुन लगा रहता है।

-------

प्रगतिशील और आधुनिक नहीं हो सकी खेती

यहां के किसान प्रयोगधर्मी और प्रगतिशील नहीं हो सके। इसी का परिणाम है कि व्यावसायिक और आधुनिक खेती से अधिकांश किसान अंजान हैं। इक्का-दुक्का जगहों पर इसका प्रयोग शुरू किया गया है। दो वर्ष पूर्व ही जिले में आचार्य नरेंद्रदेव कृषि विश्वविद्यालय से संचालित कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना हुई। जिनके जरिए कृषि वैज्ञानिक किसानों में खेती का नया नजरिया विकसित करने का प्रयास चल रहा है।

-------

गन्ना काश्तकारों की दुर्दशा

जिला दो दशक पूर्व गन्ने का प्रमुख उत्पादन केंद्र था। दस हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में गन्ने की बोआई होती थी और 63 हजार एमटी गन्ने का उत्पादन होता था। हालात इतने बेकाबू होते गए कि इकलौती चीनी मिल बेहद जर्जर हो गई। स्थापना के समय 12 हजार मीट्रिक टन की क्षमता आज भी जस की तस है। 150 से अधिक गन्ना काश्तकारों का 16 लाख से अधिक का भुगतान 2006 से बकाया है।

-------

आशान्वित हैं कृषि विशेषज्ञ

आचार्य नरेंद्रदेव कृषि विश्वविद्यालय अयोध्या के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.आरआर सिंह ने कहा कि जिले के किसान बेहद सरल प्रवृत्ति के हैं। बरासिन स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए किसानों को जैविक और आधुनिक खेती की ओर प्रेरित किया जा रहा है। तमाम किसानों ने इसे अपनाया है और आर्थिक खुशहाली की ओर बढ़ रहे हैं।

----------

बढ़ती गई लागत घटता गया मुनाफा

सरकारी आंकड़ों मे खाद्यान्न उत्पादन साल दर साल बढ़ा है। किसानों का मानना है कि उत्पादन लागत भी बेइंतिहा बढ़ी है। जयसिंहपुर के किसान संतराम व राहुल ने कहा कि गन्ना में लागत अधिक है मूल्य कम मिलता है। पूरा गन्ना बिक भी नहीं पाता। चीनी मिल खराब पड़ी रहती है। आधे से ज्यादा गन्ना खेतों में सूख जाता है।

भदैंया के किसान भोला व हृदयराम कहते हैं कि समय पर खाद, बीज व सिचाई नहीं मिलने से किसानों को भारी मुश्किल होती है। फसल तैयार होने पर भंडारण, बिक्री व उचित मूल्य व बाजार नहीं मिलते।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.