सातवीं मुहर्रम पर निकला जुलूस
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संवादसूत्र, सुलतानपुर : हुसैन और जंग-ए-कर्बला की याद में मुहर्रम की सातवीं तारीख को जगह-जगह मजलिसों के आयोजन किए गए। कर्बला का मंजर याद किया गया और अलम का जुलूस निकाल अंजुमनों ने मार्मिक नौहे पढ़े। सीनाजनी और मातम कर अकीदतमंदों ने हुसैन को याद किया। खैराबाद स्थित इमामबाड़े में सुबह से ही मजलिसें शुरू हो गईं।
अमहट स्थित इमामबाड़े में मौलाना इरशाद अब्बास लखनवी ने तकरीर की। उन्होंने जंग-ए-कर्बला का मंजर यूं बयां किया। कहा कि यजीद ने कर्बला की जंग के लिए अरब के हर सूबे से पांच-पांच हजार नामी फौजियों की टीम भेजी थी। जिन पर यजीदी फौजें गर्व करती थीं। जिनका कमांडर अरजक था। उसे अपनी ताकत का बड़ा घमंड था। वो इस शर्त पर आया था कि केवल इमाम हसन के घरवालों से लड़ेंगे। कर्बला में जब हुसैन के सारे साथी शहीद हो गए तब हसन का बेटा कासिम चाचा हुसैन के पास आया और उसने इजाजत मांगी। हुसैन ने पूछा बेटा कासिम तुम्हारे सामने मौत कैसी है। तब बड़ी ही बहादुरी से कासिम ने जवाब दिया, मेरे सामने मौत शहद से ज्यादा मीठी है। हुसैन ने कहा कि मैं तुम्हें मरने की इजाजत कैसे दे दूं, तुम तो मेरे भाई हसन की निशानी हो। ये दास्तां सुन अकीदतमंदों की आंखे छलक उठीं। वहीं शाम को अलम का जुलूस भी निकाला गया और नौहाख्वानी व सीनाजनी का मातम हुआ। पारा बाजार संवाद सूत्र के अनुसार मुख्य चौराहे पर आसपास के कई गांवों के अकीदतमंदों ने सातवीं मुहर्रम का जुलूस निकाला। हुसैन की याद में नौहे पढ़े गए। मातम व सीनाजनी की गई। मौलाना ने कहा कि इस्लाम इंसानियत का मजहब है। यहां पर दहशतगर्दों की कोई जगह नहीं है।