हाईटेक बनाना तो दूर, बोझ बन रही गोशालाएं
सुलतानपुर : गोवंश के संवर्धन और गोशालाओं को हाइटेक बनाकर उनसे किसानों को लाभांवित करने की सरकारी कार
सुलतानपुर : गोवंश के संवर्धन और गोशालाओं को हाइटेक बनाकर उनसे किसानों को लाभांवित करने की सरकारी कार्ययोजना सिरे नहीं चढ़ सकी। गोशालाओं के जरिए जैविक खेती को प्रोत्साहन, गोमूत्र व गोबर का सदुपयोग तो दूर यहां गोवंश को आधारभूत सुविधाएं तक मुहैया नहीं हो रही है। खाली भवनों और भूखंडों में बनाए गए अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलों में हांककर मवेशियों को पहुंचाना ही प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है।
छुट्टा मवेशियों से फसलों को हो रहे नुकसान से निपटने के लिए दो वर्ष पूर्व गोसेवा आयोग की ओर से हर जिले मे गोवंश वन्य विहार की स्थापना का सुझाव दिया। इन आश्रय स्थलों में गो पालन के लिए प्रशिक्षित व दक्ष कर्मियों की तैनाती किए जाने का सुझाव भी आयोग ने दिया। जिन्हें गोवंश प्रजातियों की पहचान, उनकी खूबी, पशु के स्वास्थ्य के आधार पर संतुलित आहार और चारे की खेती आदि की बेहतर जानकारी से लैश करना था। कार्ययोजना में कुछ आश्रय स्थलों को हाईटेक कर उन्हें मॉडल के रूप में विकसित किया जाना भी शामिल था। बायोगैस प्लांट, गोबर व गोमूत्र से दैनिक उपयोग की वस्तुओं के निर्माण का कुटीर उद्योग स्थापित किए जाने की मंशा थी। बेसहारा मवेशियों की समस्या इतनी विकराल हो गई कि आनन-फानन शासन ने आश्रय स्थलों की स्थापना कर इनमें पशुओं को हांककर पहुंचा तो दिया, लेकिन उन्हें सुविधाओं से संपन्न नहीं कर सका। जिले में तकरीबन दो दर्जन स्थाई और अस्थाई गोवंश आश्रय स्थल हैं। सभी आश्रय स्थलों की स्थिति दयनीय है। कुछ जगहों पर लाए गए मवेशियों की इतनी उपेक्षा की गई कि उनकी मृत्यु तक हो गई। डीएम की मॉनीटरिग के बावजूद आश्रय स्थलों के हालात बदले नहीं हैं।
आश्रय स्थलों की नोडल अधिकारी प्रिया सिंह ने बताया कि गोवंशों के लिए चारे-पानी और उनके स्वास्थ्य की निगरानी नियमित की जा रही है। कहीं किसी तरह की शिकायत नहीं है।