विषाक्त खेती को अलविदा, जीरो बजट पर निरोगी हो रही फसल
खेतीबाड़ी में जैविक कीटनाशकों के प्रयोग का चलन बढ़ रहा। लागत भी बेहद कम हुई।
सुलतानपुर : देशी और जैविक तरीकों को अपनाकर किसानों ने रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दिया है। इससे खेती विषाक्त होने से बच रही है। लागत भी बेहद कम हुई है और फसलें निरोगी हैं। सब्जी उत्पादक कच्चे दूध व हींग के मिश्रण, नीम के तेल व इसकी खली, गोमूत्र व गोबर आदि का प्रयोग कर कृषि रक्षा की नई इबारत लिख रहे हैं।
कूरेभार और दूबेपुर ब्लॉक जैविक कीट नियंत्रण के रोल मॉडल बन रहे हैं। कूरेभार के इछुरी और दूबेपुर के डिहवा गांव के सैकड़ों सब्जी उत्पादकों ने अपने खेतों में फेरोमेन व लाइटट्रेप के साथ अब घर में निर्मित देशी कीटनाशकों का उपयोग शुरू किया है। अन्य क्षेत्रों में भी इसका तेजी से प्रसार हो रहा है।
जिला कृषि अधिकारी विनय वर्मा ने बताया कि 25 लीटर पानी में एक लीटर कच्चे दूध को पानी में खौलाकर दस ग्राम हींग के मिश्रण से तैयार घोल का छिड़काव करने से पत्तियों में लगने वाले रोग से किसन पूरी तरह निजात पा गए हैं। इन उपायों से तैयार उत्पाद स्वाद में बेहतर और ज्यादा दिनों तक संरक्षित रहते हैं।
फसल के लिए अमृत बन रहा जीवामृत :
प्रयोग में पाया गया कि जीवामृत फसलों के लिए अमृत बन रहा है। जीवामृत देशी गाय के गोबर, गौमूत्र को मिलाकर बनाया जाता है। एक ग्राम गोबर में तीन करोड़ वैक्टीरिया होते हैं। गोबर व गोमूत्र में गुड़ मिलाने से वैक्टीरिया लगातार बढ़ते हैं। इसमें उनका भोजन बेसन मिलाकर मिश्रण में बरगद पेड़ के नीचे की एक मुट्ठी मिट्टी डालकर दो से चार मिनट तक लकड़ी से चलाया जाता है। यह क्रिया चार दिन की जाती है। एक एकड़ फसल पर 200 लीटर जीवामृत माह में एक बार प्रयोग किया जाता है। इससे पौधों की जबरदस्त बढ़त होती है।