आमजनों के लिए मुसीबत बन रहे तालाब में तब्दील हो रहे प्लॉट
ड्रेनेज सिस्टम बदहाल होने से लोग परेशान हो रहे है। वहीं सारी कार्रवाई केवल कागजों में सिमट कर रह गई है।
सुलतानपुर : शहर में 33 वर्ष पूर्व महायोजना लागू हुई। मास्टर प्लान का उद्देश्य था कि निरंतर हो रहे शहरीकरण को नियोजित ढंग से विकसित किया जाए। चौड़ी सड़कें, दोनों ओर जल बहाव के लिए बेहतर नालियां और अच्छी सड़कें और नक्शे के अनुसार भवन निर्माण हो। यह सब कागजों पर सिमट कर रह गया। बेतरतीब विकास और नित बनते आवास ने शहर की तस्वीर ही बदल दी। हालात यह हैं कि शहरी सीमा के इर्द-गिर्द गांव व शहर के मुहल्ले बनते जा रहे हैं। न यहां मास्टर प्लान के नियम और शर्तें लागू हैं और न ही इनका अनुपालन सुनिश्चित हो रहा है। हालात यह हैं कि शहर के नए मुहल्लों में खाली प्लॉट घर की जलनिकासी से तालाब में तब्दील हो गए हैं और पूरे वर्ष इनमें पानी भरा रहता है।
आठ किमी परिधि में लागू है महायोजना : नगर पालिका क्षेत्र को छोड़कर शहर के 44 गांव विनियमित क्षेत्र में 1987 से सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में किसी भी निर्माण के लिए 16 बिंदुओं की शर्तें पूरी करनी होती हैं। तभी नक्शा पास होता है। सार्वजनिक सुविधाएं इस क्षेत्र में उपलब्ध कराने के लिए विकास शुल्क वसूला जाता है, लेकिन विकास नहीं होता। एक दशक पहले ओमनगर, बघराजपुर, चुनहा, पयागीपुर, अंबेनगर, सैनिक बिहारी कॉलोनी, लोहरामऊ, केएनआई कस्बा, टेढुई तक शहरी आबादी बसी है, लेकिन यहां बुनियादी सुविधा नहीं है।
गायब हो रही हैं नालियां : नए मुहल्लों में तो नालियों का निर्माण ही नहीं किया गया है। वहीं नगर पालिका के पुराने बाजारों और मुहल्लों में इनका अस्तित्व मिटता जा रहा है। शहर के किसी भी बाजार के फुटपाथों के किनारों पर नाली का दिखना आश्चर्य जैसा। व्यावसायिक लाभ के लिए इन पर दुकानें सज ली गई हैं। हल्की बरसात में भी यह बाजार और मुहल्ले जलभराव से जूझते हैं।
वर्जन
महायोजना फिलहाल स्थगित है और इसे पुन: लागू करने के लिए शासन स्तर पर विचार चल रहा है। इसके स्थान पर अमृत योजना के नियमों के तहत विनियमित क्षेत्र कार्य कर रहा है। अवैध निर्माणों की रोकथाम की जाती है।
दीन दयाल पांडेय, अवर अभियंता विनियमित क्षेत्र