गोसेवा व वन संरक्षण को बनाया जीने का आधार
दूबेपुर विकासखंड के बंधुआ कला बाबाजी का सगरा स्थित ऐतिहासिक बाबा सहजराम मठ का वन क्षेत्र कभी बेश कीमती पेड़-पौधों के लिए मशहूर था। एक किमी परिधि में फैला यह वन क्षेत्र समय के साथ खत्म होता चला गया।
सुलतानपुर : दूबेपुर विकासखंड के बंधुआ कला बाबाजी का सगरा स्थित ऐतिहासिक बाबा सहजराम मठ का वन क्षेत्र कभी बेश कीमती पेड़-पौधों के लिए मशहूर था। एक किमी परिधि में फैला यह वन क्षेत्र समय के साथ खत्म होता चला गया। ऊसर होती जमीन को फिर से सिचित कर हरा भरा करने की जिद ने आश्रम के मौजूदा महंत बाबा भरतदास को जिद्दी बना दिया। उनके प्रयास और वन विभाग की इनायत नजर से एक बार फिर से उजड़ी बगिया हरियाली में बदलने को तैयार है। हजारों पेड़ लगाकर पर्यावरण को संरक्षित किया जा रहा है। आश्रम में स्थापित गोशाला में सैकड़ों गायों की सेवा भी की जा रही है।
350 बीघे में फैला वन क्षेत्र
इतिहास में मिले साक्ष्यों के अनुसार सन 1600 के आसपास बाबा सहजराम अयोध्या से लखनऊ के रास्ते बंधुआ कला पहुंचे थे। इस आश्रम को लेकर एक कथा प्रचलित है कि 1630 में हाथ में सांप लिए हुए शेर पर बैठकर एक साधू आए। उस समय सहजराम बाबा एक दीवार पर बैठकर दातून कर रहे थे। साधू की आगवानी को लेकर दीवार को चलने के लिए कहा तो दीवार चलकर साधू के पास पहुंची। उनकी इस अलौकिक महिमा को देखकर चकित साधू उनकी कदमों में गिर गए। इसके बाद वह वहीं रुक गए और बाबा सहजराम ने उन्हें रहने के लिए 85 बीघा बाग दे दी। जहां वह कुटिया बनाकर रहने लगे। जोगिया वन में रहने के कारण उनको जोगी बाबा के नाम से जाना जाने लगा। इसके अलावा भी करीब तीन सौ बीघा जंगल क्षेत्र आश्रम के इर्द-गर्द फैला था।
रोपे गए साढ़े 12 हजार पौधे
महंत बाबा भरत दास कहते हैं खत्म होती हरियाली को दोबारा वापस लाने के लिए 2017 में उन्हें पौधरोपण का ख्याल आया। वन विभाग के सहयोग से साढ़े 12 हजार पेड़ लगवाए गए। पौधरोपण के दो साल तक देखभाल करने के बाद वन विभाग ने इसे संगत के हाथ सुपुर्द कर दिया। बाग में कदम्ब, आम, जामुन, अंबार, शीशम, शिरसा, चिलबिल, बांस के पेड़, सागौन आदि के पौधे मौजूद हैं।
गो आश्रय स्थल व खुलवाया स्कूल
गोवंश प्रेमी बाबा भरतदास की संगत के पास ही बृजरानी गोसेवा आश्रम भी चलता है। जिसमें कई दर्जन गायें रहती हैं। आश्रम के सेवकों द्वारा उनकी देखभाल की जाती है। इसी गो आश्रय स्थल के पास ही उनके द्वारा दान किए गए भवन में ही सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल भी चलता है।