बगैर एक ईंट रखे खड़ी करा दी आवास की छह फीट दीवार
जागरण संवाददाता सोनभद्र आदिवासी बाहुल्य जनपद में यहां की भोली-भाली जनता को बहला-फूसलाकर
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : आदिवासी बाहुल्य जनपद में यहां की भोली-भाली जनता को बहला-फूसलाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने और उनके नाम पर आने वाले सरकारी धन की बंदरबांट कैसे होती है इसका अंदाजा नगवां ब्लाक के देवरी मय देवरा ग्राम पंचायत में बनने वाले एक आवास को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। यहां एक इंदिरा आवास के निर्माण में एक ईंट भी नहीं लगायी गई और छह फीट की दीवार खड़ी कर दी गई। यानी यहां आवास के नाम पर गजब का फर्जीवाड़ा किया गया है। अब दूसरी किस्त का पैसा लेकर लाभार्थी इधर-उधर दफ्तरों का चक्कर काट रहा है। अगर ठीक से जांच हो तो ऐसे सैकड़ों मामले सामने आ सकते हैं।
वर्ष 2016 में ही देवरी मय देवरा ग्राम पंचायत के डीबा गांव निवासी रामेश्वर पुत्र रामविलास को इंदिरा आवास योजना के तहत आवास मिला। रामेश्वर ने जिलाधिकारी कार्यालय में शिकायती पत्र देकर बताया है कि आवास की प्रथम किस्त का 37 हजार 500 रुपये मिला था। ग्राम प्रधान ने उसे ले लिया और कहा कि आवास बनवा देंगे। बाद में न आवास बना और न ही पैसा मिला। किसी तरह से 17 हजार 500 रुपये वापस किए लेकिन 20 हजार आज तक नहीं दिए। दूसरी किस्त का पैसा मंगाने के लिए उन्होंने दूसरे के आवास के सामने खड़ा कराकर फोटो खिचवा दिया। इस तरह से उसका भी पैसा आ गया। यानी दूसरी किस्त का पैसा तभी मिलता है जब दीवार लेंटर स्तर यानी छत स्तर पर पहुंच जाती है। बताया कि बुनियाद भी नहीं भरी गई है। दूसरी किस्त का पैसा आया तो वह अभी भी खाते में पड़ा है। बता दें कि शायद ऐसे ही मामले होने के कारण जिले में 500 से अधिक आवास अब तक अधूरे पड़े हैं। यानी एक करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि का गोलमाल हो गया। इस संबंध में प्रधान युधिष्ठिर ने बताया कि ऐसी कोई बात नहीं है। लाभार्थी के खाते में पैसा आया तो वह मुझे क्यों देगा। जो आरोप लगाया गया है वह निराधार है। आवास न बनवाने के कारण उसकी दूसरी किस्त का पैसा निकालने से रोक दिया गया है।
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इंदिरा आवास में कुल 75 हजार रुपये की धनराशि होती थी। उसमें पहली किस्त के बाद दूसरी किस्त का पैसा तभी मिलता था जब दीवार लेंटर स्तर पर पहुंच जाती थी। बगैर उसके धनराशि नहीं मिलती। अगर इस तरह की गड़बड़ी कहीं हुई तो इसकी जांच कर कार्रवाई की जाएगी। वैसे लाभार्थियों को खुद सचेत रहना चाहिए।
-आरएस मौर्य, परियोजना निदेशक-डीआरडीए