शाहगंज के पेड़े ने लंदन तक फैलाई मिठास
हुनरमंद के लिए प्रतिस्पार्धाएं मोहताज नहीं हुआ करतीं। उसका स्थान कायम रहता है। विपरीत हालातों में भी अनुकूल स्थिति पैदा करने के जज्बे ने ही शाहगंज निवासी पंचम मोदनवाल को एक नाम दे दिया है। वह है गुलाब के पेड़े की दुकान। यह दुकान लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी है लेकिन गुलाब का कुनबा अपनी खासियत व ख्याति आज भी बरकरार रखे हुए है। पिछड़े क्षेत्र में होने के बाद भी यहां के पेड़े के स्वाद ने अंग्रेजों को इनके यहां आने के लिए विवश कर दिया था। वहीं आज भी पेड़े की मिठास लंदन व आस्ट्रेलिया तक में फैली हुई है।
जागरण संवाददाता, शाहगंज (सोनभद्र) : हुनरमंद के लिए प्रतिस्पार्धाएं मोहताज नहीं हुआ करतीं। उसका स्थान कायम रहता है। विपरीत हालातों में भी अनुकूल स्थिति पैदा करने के जज्बे ने ही शाहगंज निवासी पंचम मोदनवाल को एक नाम दे दिया है। वह है गुलाब के पेड़े की दुकान। यह दुकान लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी है लेकिन गुलाब का कुनबा अपनी खासियत व ख्याति आज भी बरकरार रखे हुए है। पिछड़े क्षेत्र में होने के बाद भी यहां के पेड़े के स्वाद ने अंग्रेजों को इनके यहां आने के लिए विवश कर दिया था। वहीं आज भी पेड़े की मिठास लंदन व आस्ट्रेलिया तक में फैली हुई है।
जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर शाहगंज कस्बे के गुलाब मोदनवाल किसी नाम के मोहताज नहीं थे। हालांकि अब गुलाब तो नहीं हैं लेकिन उनके आगे की पीढ़ी उनके नाम को अमर किये हुए है। उनके पुत्र पंचम मोदनवाल बताते हैं कि बात अंग्रेजों के जमाने की है। जब अंग्रेज दुकान पर आकर पेड़ा खाते थे। आजादी की लड़ाई में ब्रितानी हुकूमत को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जहां फूटी कौड़ी नहीं सुहाते थे वहीं अंग्रेज अधिकारी यहां की मिठाई खाकर अपने आपको धन्य मानते थे। दौर बीता, साथ में पीढि़यां बदलीं लेकिन, हुनर जस का तस बरकरार है। पंचम ने बताया कि यह दुकान लगभग डेढ़ शतक पुरानी है लेकिन, यहां के पेड़े के स्वाद में नाममात्र भी बदलाव नहीं हुआ है। आज पेड़ा के लिए दूरदराज से लोग यहां आते हैं। लंदन जाते वक्त ले जाते हैं पेड़ा
राबर्ट्सगंज निवासी व्यापारी राजकुमार जालान के बच्चे लंदन में रहते हैं। बताया कि जब भी लंदन से स्वदेश आते हैं और यहां से लंदन जाते हैं, उस समय विशेष रूप से यहां का पेड़ा लंदन ले जाते हैं। इस पेड़े की खासियत है कि उन्हें पेड़ा लंदन ले जाना पड़ता है। वहीं कैमूर वन्य जीव प्रभाग महुअरिया आने वाले विदेशी पर्यटक भी पेड़ा के मुरीद हैं। पेड़ा देख जब हुआ आश्चर्य
पुरखों के गुणों को आगे बढ़ाने वाली वर्तमान पीढ़ी के अगुवा पंचम ने बताया कि दादा-परदादा भी इसी दुकान में पेड़ा बनाते थे। पिताजी कहा करते थे कि वह दौर 1900 से पहले का था। जब एक अंग्रेज अधिकारी दुकान पर आया और इमरती व पेड़ा खाया। उस दौरान उसने इमरती में सी¨रज से शीरा भरने की बात पूछी थी। इसके साथ ही बड़हर रियासत के महाराजा के यहां बाबा की बनायी मिठाइयां ही जाती थीं। फ्रिज का तोड़ है यहां का हुनर
वहीं पंचम ने फ्रिज का तोड़ भी बताया। कहा कि यहां का पेड़ा बरसात का मौसम छोड़कर बिना फ्रिज के चार माह तक रखा जा सकता है। बताया कि इसके लिए पुरखों ने जो विधि अपनाई वह अभी तक जारी है। पेड़ों में स्वाद व उसके रखने की व्यवस्था उतनी ही पुरानी है जितनी की यह दुकान।