पीड़ितों के मान-सम्मान को जूझते हैं साबिर हुसैन
कुछ समय पहले म्योरपुर के एक गांव की 17 वर्षीय किशोरी एक प्राइवेट क्लीनिक में इलाज कराने जाती है। वहां पर चिकित्सक ने उसके साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया। लेकिन पुलिस इस मामले में महज छेड़खानी का मुकदमा दर्ज कर मामले को रफदफा करने के चक्कर में पड़ गई। जब इसकी जानकारी आदिवासी समाज के उन ठेकेदारों को हुई जो उनके नाम पर धन उगाही करते थे वे किशोरी को समाज से बहिष्कृत करने लगे। पीड़िता डरी, सहमी थी। क्योंकि एक तो उसके साथ जो हुआ वह गलत हुआ दूसरा जो हो रहा था वह तो ¨जदगी भर के लिए दर्द देने वाला था। इसी बीच मामले की जानकारी हुई कांचन गांव निवासी सामाजिक कार्यकर्ता साबिर हुसैन को। उन्होंने न केवल पीड़िता से संपर्क कर उसे हिम्मत दिया बल्कि उस समाज से भी वार्ता किया जो उसे बहिष्कृत कर रहा था। फिर कानूनी लड़ाई के लिए धरना देकर न्याय दिलाया।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : कुछ समय पहले म्योरपुर के एक गांव की 17 वर्षीय किशोरी एक प्राइवेट क्लीनिक में इलाज कराने जाती है। वहां पर चिकित्सक ने उसके साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया। पुलिस इस मामले में महज छेड़खानी का मुकदमा दर्ज कर मामले को रफदफा करने के चक्कर में पड़ गई। इतना ही नहीं जब इसकी जानकारी आदिवासी समाज के उन ठेकेदारों को हुई जो उनके नाम पर धन उगाही करते थे वे भी किशोरी को समाज से बहिष्कृत करने में लग गए। पीड़िता डरी, सहमी थी क्योंकि एक तो उसके साथ जो हुआ वह गलत हुआ दूसरा जो हो रहा था वह तो ¨जदगी भर के लिए दर्द देने वाला था। इसी बीच मामले की जानकारी हुई कांचन गांव निवासी सामाजिक कार्यकर्ता साबिर हुसैन को। उन्होंने न केवल पीड़िता से संपर्क कर उसे हिम्मत दी बल्कि उस समाज के लोगों से भी वार्ता किए जो उसे बहिष्कृत कर रहे थे। फिर कानूनी लड़ाई के लिए धरना देकर उन्होंने युवती को न्याय दिलाया।
जी हां, 48 वर्षीय साबिर हुसैन वर्ष 2002 से ही समाज के ऐसे लोगों के लिए काम कर रहे हैं जो गरीब, पिछड़े हैं। अपने क्षेत्र में भ्रमण के दौरान जो भी ऐसा गरीब मिलता है जिसे न्याय की दरकार होती है, उसका खोया हुआ सम्मान चाहिए होता है तो उसके लिए ये सड़क से लेकर संसद तक चक्कर लगाने को तैयार रहते हैं। दो दशक में अब तक करीब एक दर्जन ऐसे लोगों की मदद कर चुके हैं जो अपनी उपेक्षा के कारण समाज से कटे-कटे रहने लगे थे। कहते हैं अगर इंसान का मान-सम्मान बरकरार है तो वह समाज में हर समय तरक्की करेगा।
युवाओं को आगे आने की जरूरत
किसी भी पीड़ित को उसका खोया हुआ सम्मान दिलाने के लिए जिस तरह की गति समाज में देखती है वह पर्याप्त नहीं है। अब हर किसी को इसके लिए आगे आना होगा। जब भी कोई व्यक्ति कभी किसी कारण से उपेक्षित होता है तो उसके साथ कंधे से कंधा मिलाने वाला कोई नहीं होता। जो समाज के लिए खतरे की घंटी है। युवाओं को आगे आना चाहिए, जिससे पीड़ितों को न्याय मिल सके। खासकर ऐसे समाज में जहां अब भी लोग छोटी-छोटी घटनाओं पर आंख बंद करके अंधविश्वास की मकड़जाल में पड़ जाते हैं। सूबे के सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाले जनपद में आज भी अंधविश्वास चरम पर है। म्योरपुर, दुद्धी, बभनी, चोपन, नगवां आदि क्षेत्रों में कई ऐसे मामले प्रकाश में आते हैं कि महिलाओं को डायन कहकर उन्हें उपेक्षित कर दिया जाता है। ऐसे में वह महिला समाज से बहिष्कृत हो जाती है। ऐसे में इस प्रथा पर पाबंदी लगाने के लिए हर किसी को आगे आने की जरूरत है।