Road safety in Sonbhadra : साक्ष्य और गवाह न होने के कारण सड़क दुर्घटना के पीड़ित कोर्ट का लगा रहे चक्कर
मोटर दुर्घटना में मुआवजा के लिए कई कारण हैं। इसमें गाड़ियों का बीमा न होना प्राइवेट पार्टी का न्यायालय में हाजिर न होना याची को वाहनों का पेपर जैसे आरसी डीएल बीमा पत्र फिटनेस आदि न मिल पाना है। अक्सर ऐसा होता है कि गवाही नहीं मिल पाती है।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : पन्नूगंज थाना क्षेत्र के पकरहट गांव के रामाशीष व राजकुमार की पत्नियाें की पिछले वर्ष आटो दुर्घटना में मौत हो गई। बच्चे भी घायल हुए। चालक दूसरे की आटो चला रहा था। उसके पास आटो से संबंधित कोई कागजात नहीं था। अब यह परिवार क्षतिपूर्ति के लिए न्यायालय का चक्कर काट रहा है। न्यायालय में कई बार निर्धारित तिथियों पर रामाशीष व राजकुमार पहुंच चुके हैं, लेकिन न तो साक्ष्य मिल रहे और न ही गवाह।
नतीजा है कि उनका मामला न्यायालय में लंबित है और मुआवजा की उम्मीद फिलहाल धुंधली नजर आ रही है। जिले में दो दिन में औसतन एक व्यक्ति की सड़क दुर्घटनाओं में मौत होती है। इन दुर्घटनाओं में दम तोड़ने वाले या गंभीर रूप से घायल होने वाले लोगों के स्वजन मुआवजे के लिए न्यायालय में वाद दाखिल करते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलाें में ऐसा होता है कि पर्याप्त साक्ष्य व गवाह न मिलने के कारण मुआवजा का मामला लंबित रह जाता है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो एक नवंबर तक मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण न्यायालय में मुआवजे से संंबंधित करीब 1903 मामले लंबित हैं, जबकि करीब 1800 मामले निस्तारित हो चुके हैं। इन आंकड़ों में मृतकों और घायलों दोनों की संख्या शामिल है।
क्लेम में बाधा के हैं कई कारण
मोटर दुर्घटना में मुआवजा के लिए कई कारण हैं। इसमें गाड़ियों का बीमा न होना, प्राइवेट पार्टी का न्यायालय में हाजिर न होना, याची को वाहनों का पेपर जैसे आरसी, डीएल, बीमा पत्र, फिटनेस आदि न मिल पाना है। अक्सर ऐसा होता है कि गवाही नहीं मिल पाती है। घटना के वक्त मौके पर तमाम लोग इकट्ठा होते हैं, फोटो, वीडियो आदि बनाते हैं, लेकिन जब कोर्ट में बयान देने की बारी आती है तो ज्यादातर लोग गवाही देने से इनकार कर देते हैं। इससे मोटर दुर्घटना दावा करने के बावजूद मुआवजा मिलने में दिक्कत होती है।
दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाना होता है मुश्किल
सड़क दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल लोगों को अक्सर दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाना मुश्किल हो जाता है। मोटर दुर्घटना दावा संबंधित मामले देखने वाले अधिवक्ता बीके सिंह बताते हैं कि अक्सर पीड़ित पक्ष पहले प्रमाण पत्र बनवाने के लिए सीएमओ कार्यालय का चक्कर काटता है। यदि दिव्यांग प्रमाण पत्र बन भी गया तो उसको प्रमाणित करने के लिए न्यायालय में डाक्टर का अाना मुश्किल हो जाता है। एेसे में मुआवजा मिल पाना किसी चुनाैती से कम नहीं होता है।
बगैर पेपर ट्रांसफर के चला रहा था दूसरे की टेंपो
पन्नूगंज थाना क्षेत्र के पकरहट गांव निवासी पीड़ित रामाशीष व राजकुमार का कहना है कि टेंपो दुर्घटना में दोनों की पत्नियों की मृत्यु हो गई। जिस टेंपो काे चालक चला रहा था वह दूसरे की थी। चालक ने वाहन तो खरीद लिया था लेकिन परिवहन कार्यालय से उसका पेपर अपने नाम नहीं कराया था। वाहन का न तो बीमा था और न ही चालक हाजिर हो रहा है। इसलिए क्लेम नहीं मिल पा रहा है।
सड़क दुर्घटनाओं की नहीं होती वैज्ञानिक जांच
जनपद में होने वाले सड़क दुर्घटनाओं की जांच ट्रैफिक या सिविल पुलिस मौके पर स्थिति को देखकर रिपोर्ट बनाती है। यहां पर घटनाओं की जांच के लिए कोई वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण सड़क दुर्घटना में पीड़ित पक्ष न्यायालय में अपना पक्ष बेहतर ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाता है। यातायात प्रभारी प्रमोद यादव ने बताया कि अमूमन सभी सड़क दुर्घटनाओं का कारण स्पष्ट होता है, इसलिए ऐसी किसी टीम का सहयोग लेने की जरूरत नहीं होती।
यातायात कर्मियों को दिया जाता है प्रशिक्षण
यातायात प्रभारी प्रमोद यादव ने बताया कि जनपद में इस समय अधिकारी, सिपाही व चालक को लेकर 76 कर्मी है। सभी को समय-समय पर यातायात नियमों से लेकर अन्य जरूरी कार्यों का प्रशिक्षण मिलता है। वर्तमान समय में ही 18 सिपाहियों का प्रशिक्षण का कार्य चल रहा है।