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आधे से अधिक पेयजल परियोजनाओं की टंकियां बंद

कामन इंट्रो :- पेयजल परियोजना में टंकियों की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यहां ऐसा दिख्

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Mar 2018 09:02 PM (IST)Updated: Mon, 12 Mar 2018 09:02 PM (IST)
आधे से अधिक पेयजल परियोजनाओं की टंकियां बंद
आधे से अधिक पेयजल परियोजनाओं की टंकियां बंद

कामन इंट्रो :-

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पेयजल परियोजना में टंकियों की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यहां ऐसा दिख नहीं रहा है। यहां तो स्थिति यह है कि टंकिया पुराने जमाने की हैं और काम नई समस्याओं से निजात पाने का लिया जा रहा है। ऐसे में लोगों को राहत नहीं बल्कि और मुश्किलें खड़ी की जा रही हैं।

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-जलनिगम व ग्राम समूह से संचालित पेयजल परियोजना की टंकियां हैं बंद

-कुछ टंकियों में दशकों पुरानी पाइप लाइनों से करायी जा रही जलापूíत

जागरण टीम, सोनभद्र : जनपद के जल निगम व ग्राम पंचायत से संचालित दर्जन भर से अधिक पेयजल परियोजनाओं से जुड़ी दर्जनों टंकियां बंद हैं। इसके साथ ही कई टंकियों का पानी पीने के नहीं बल्कि ¨सचाई के उपयोग में लिया जा रहा है। वहीं कुछ टंकियों का निर्माण हाल ही में कराया गया लेकिन इसके पानी की आपूíत दशकों साल पुरानी पाइप लाइन से की जा रही है।

वहीं चालू टंकियों की सफाई भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है। स्थिति तो यह है कि पेयजल टंकियों की मरम्मत पर पिछले पांच सालों के भीतर रत्ती भर भी धन खर्च नहीं किया गया। कागजों में चल रही पेयजल टंकियां

जनपद में समूचे पेयजल परियोजनाओं से जुड़ी टंकियों की पड़ताल में पता चला कि ज्यादातर टंकियां जो बंद हैं वह कागजों में चल रही हैं। इसमें मुख्य रूप से मुक्खा परियोजना की पेयजल टंकी शामिल है। इस टंकी का निर्माण अधिमौला गांव में लगभग 20 साल पहले हुआ और दर्जनों गांवों को जोड़ा गया। अब स्थिति यह है कि टंकी पूर्ण रूप से बंद है और विद्युत तार, दूसरे उपकरण गायब हैं और पाइप लाइन ध्वस्त हैं। इसके साथ ही धूर्पा, महुली, पगिया, ¨वढमगंज, कड़िया, शिवद्वार, कोन, कर्मा चट्टी, बघोर, बढ़ौली कुसाही, रामगढ़, धर्मदासपुर, सेमरिया, बलियारी, तेंदुआ, बीजपुर, कचनरवा, चपकी सहित दूसरी अन्य परियोजनाओं से जुड़ी टंकियां हैं। कोटा ग्राम समूह पेयजल योजना की टंकी कोटा खास गांव में स्थित है। इससे आधे अधिक गांव के लोग पानी की सुविधा से वंचित हैं।

कुछ टोलों में आपूíत पर सवाल

जलनिगम व ग्राम पंचायत की संचालित परियोजनाओं में टंकियों से जुड़ी कुछ न कुछ खामियां जरूर मिली हैं। सबसे बड़ी खामियां टंकियों की अवधि बीतने के साथ बढ़ती आबादी के भार के अनुसार विस्तार नहीं करने की हैं। अब स्थिति यह है कि जल निगम से संचालित एक परियोजना ऐसी है जिसे बने अभी मात्र आठ साल हुए हैं। बाकी परियोजनाएं 30 से 45 साल की हैं।

ऐसे में सभी परियोजनाओं से जुड़ी टंकियों जो चालू हालत में हैं, से पानी की आपूíत पूरी आबादी के बजाय कुछ टोलों में करके अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर दिया जा रहा है। कोटा व कोन सहित लगभग सभी परियोजनाएं शामिल हैं।

इसके साथ ही जरहां ग्राम पंचायत में स्थित टंकी से दस सालों में महज 11 लोगों को पेयजल कनेक्शन दिया गया है।

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जलनिगम से संचालित परियोजनाएं

योजना का नाम जुड़ी आबादी स्थापना

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धूर्पा परियोजना 2950 1967

महुली 8300 1967

¨वढमगंज 11200 1967

कड़यिा 1030 1969

शिवद्वार 7300 1970

कोन 8725 1971

करमा चट्टी 9365 1972

बघोर 3700 1972

कोटा 5000 1973

बढ़ौली कुसाही 61500 1984

रामगढ़ 5400 2009

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क्या बोले नागरिक

- टंकी की स्थिति बहुत ही दयनीय है। कुछ टोलों तक पानी मुहैया कराने की प्रवृत्ति ने लोगों के सामने नवीन संकट खड़ा कर दिया है। - संजय चतुर्वेदी, कोन। - जिला प्रशासन को बढ़ती आबादी के भार के अनुसार टंकी का नवीन निर्माण कराना चाहिए। जनपद में वैसे भी हर साल पानी का संकट बना रहता है। - बचउ प्रसाद, कोन। - पेयजल संकट से निजात पाना आज के समय में बहुत बड़ी बात होगी। लगातार समस्याएं बढ़ती गईं और उसके निराकरण के लिए कुछ खास प्रयास नहीं किए गए। - पप्पू, कन्हारी। - टंकी की स्थिति ऐसी है कि पानी कभी नसीब ही नहीं हुआ। अगर कहीं हो भी रहा है तो कब बंद हो जाएगा इसका कोई ठिकाना नहीं है। - धनुक, कन्हारी। - समस्याएं गंभीर होने के साल जल निगम को सचेत होने की जरूरत है। कुछ काम तो हस्तांतरण के चलते बिगड़ रहे हैं। संचालन अधिकार की नीति सख्त होने चाहिए। - निलेश पांडेय, अधवार। - सरकार के सभी दावे टंकियों की सच्चाई के सामने ध्वस्त हैं। अगर कुछ करना है तो सरकार को सबसे पहले जनपद में पेयजल की टंकियों को बढ़ाना चाहिए। - महेंद्र ¨सह, लहास।


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