अब आसान नहीं रहा भूमि अधिग्रहण
ग्रामीणों को अपनी भूमि से बड़ा लगाव होता है, इस लगाव में उसकी उत्पादन क्षमता से ज्यादा सरोकार नही होता।क्योंकि उत्पादन का मामला ज्यादातर ¨सचाई संसाधनों पर निर्भर होता है।
जासं, ओबरा(सोनभद्र) : ग्रामीणों को अपनी भूमि से बड़ा लगाव होता है, इस लगाव में उसकी उत्पादन क्षमता से ज्यादा सरोकार नहीं होता क्योंकि उत्पादन का मामला ज्यादातर ¨सचाई संसाधनों पर निर्भर होता है। ¨सचाई के संसाधन विकसित करने की जिम्मेदारी आमतौर पर सरकारों की होती है। सोनभद्र के कई ब्लाकों की भूमि पहाड़ी बाहुल्य है इस कारण यहां खरीफ और रबी की फसलों के लिए स्थिति ठीक नहीं मानी जाती है। खासकर चोपन व म्योरपुर में पहाड़ी बाहुल्य क्षेत्र ज्यादा हैं। इसके बावजूद यहां के ग्रामीण अपनी भूमि पर पत्थर का सीना चीरकर फसलें उगा रहे हैं। ऐसे में उनकी जमीनों के महत्व को लेकर दी जा रही सरकारी परिभाषा ग्रामीणों को खटक रही है। इस कारण औद्योगिक विकास के लिए यहां पर भूमि अधिग्रहण तीन चार दशक पहले जैसा आसान नहीं है। खासकर तीन दशक पहले की अपेक्षा आबादी भी दुगनी से ज्यादा हो चुकी है। इस कारण मालिकाना हक संबंधी विवाद भी अधिग्रहण में ग्रहण लगा रहा है। वर्तमान में 1320 मेगावाट की निर्माणाधीन ओबरा-सी के साथ भविष्य में अनपरा ई सहित निजी क्षेत्र की कई परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इसलिए भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता है। सर्किल रेट बनी समस्या
उत्पादन क्षमता कम होने के कारण औद्योगिक विकास के लिए महत्वपूर्ण चोपन और म्योरपुर ब्लाक की जमीनों का सर्किल रेट मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा काफी कम है। वर्तमान में निर्माणाधीन ओबरा-सी के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है। ओबरा-सी के ऐश डैम के निर्माण के लिए लगभग 125 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाना है। इसमें ग्राम पंचायत पनारी के गुरूड़ टोले के ग्रामीणों की लगभग 63 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जानी है। यह क्षेत्र सदर तहसील के अगोरी परगना में आता है, यहां सर्किल रेट 11 लाख प्रति हेक्टेयर है। जो मैदानी इलाकों सहित जनपद के दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा काफी कम है। सदर तहसील में ही कई कृषि से जुड़ी जमीनों का सर्किल रेट 60 लाख प्रति हेक्टेयर तक है। इस कारण गुरूड़ के ग्रामीण अपनी भूमि देने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके अलावा मुआवजा नीति में नौकरियों के प्रावधान खत्म करने से भी जमीन मालिक नाराज हैं। पूर्व में इसी गांव के पास बने ऐश डैम के निर्माण में नौकरियां दी गई थी। इस कारण वर्तमान में भी ग्रामीण नौकरियों की आस लगाए हुए हैं। जनपद की ज्यादातर परियोजनाओं के निर्माण पुरानी मुआवजा नीति के दौरान ही हुए हैं जिनमें भूमि के बदले नौकरियां दी गई हैं। वर्तमान मुआवजा नीति में सर्किल रेट से अधिकतम चार गुना तक जमीन का रेट देने का ही प्रावधान है। अब गुरूड़ के ग्रामीण सर्किल रेट बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।
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सर्किल रेट तय करना जिला प्रशासन का कार्य है। इस संबंध में प्रशासनिक स्तर की कमेटी का गठन किया गया है, जिसमें सर्किल रेट को लेकर चर्चा हो सकती है। अब तक ग्रामीणों की जमीनों का मूल्यांकन कर लिया गया है। सभी आवश्यक रिपोर्ट जिला प्रशासन को दे दी गई है। जिला प्रशासन तय एक्ट के तहत नोटिफिकेशन सहित अन्य कार्रवाई करेगी।
-राजीव कुमार, अधिशासी अभियंता, ओबरा-सी।