कंडाकोट पहुंची कण्व ऋषि की प्रतिमा, होगी प्राण प्रतिष्ठा
जिला मुख्यालय से सटे बहुआर गांव में वैदिक काल के ऋषि कण्व की तपोस्थली कंडाकोट में जल्द ही उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी। प्रतिमा स्थापित कराने का जिम्मा कर्नाटक के एक अनुयायी ने लिया है। इससे जिले के इस ऐतिहासिक स्थल का विकास तेजी से होने की पूरी उम्मीद है। यहां प्रतिमा पहुंच भी गई है। बसंत पंचमी यानि दस फरवरी के दिन ही स्थापना कराने का प्लान तैयार किया गया है। वहीं पर्यटन विभाग ने भी इस स्थल को जिला योजना में अपने प्रस्ताव का हिस्सा बनाया है, जिससे इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : जिला मुख्यालय से सटे बहुआर गांव में वैदिक काल के ऋषि कण्व की तपोस्थली कंडाकोट में जल्द ही उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी। प्रतिमा के स्थापना का जिम्मा कर्नाटक के एक अनुयायी ने लिया है। इससे जिले के इस ऐतिहासिक स्थल का विकास तेजी से होने की उम्मीद है। यहां प्रतिमा पहुंच भी गई है। वसंत पंचमी यानी दस फरवरी के दिन ही स्थापना कराने का प्लान तैयार किया गया है। पर्यटन विभाग ने भी इस स्थल को जिला योजना में अपने प्रस्ताव का हिस्सा बनाया है, जिससे इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके।
आस्था की संगमस्थली कंडाकोट जहां कण्व ऋषि ने तपस्या की थी। यह स्थल जमीन से करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर है। इस पहाड़ी पर ही अर्धनारीश्वर भगवान शिव व माता-पार्वती की प्राचीन मूर्ति भी है। यहां हर वर्ष वसंत पंचमी और महाशिवरात्रि पर मेला लगता है। वर्षों से उपेक्षित इस स्थल के विकास में लगे कंडाकोट संरक्षण एवं विकास समिति के प्रबंधक व अध्यक्ष धनंजय तिवारी और सर्वेश तिवारी ने बताया कि कनार्टक के एक बैंक से सेवानिवृत्त हुए मैनेजर कुछ ही दिन पहले यहां आए थे। वे कण्व ऋषि को काफी मानते हैं। उन पर कुछ रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने ही प्रतिमा बनवाकर भेजा है। इसके लिए फाउंडेशन आदि बनाने का काम शुरू कर दिया जाएगा। प्रतिमा स्थापना के बाद कुछ लोग तो इसे देखने के लिए भी आएंगे।
यहीं पर हुआ था भरत का पालन-पोषण
कंडाकोट विकास एवं संरक्षण समिति के प्रबंधक धनंजय त्रिपाठी बताते हैं यह स्थल काफी महत्वपूर्ण है। इस ऐतिहासिक स्थल के बारे में मान्यता है कि देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया था। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में भरत का पालन-पोषण हुआ था। यहीं पर कण्व ऋषि ने तपस्या की थी। उपेक्षित है कंडाकोट -कंडाकोट आज भी उपेक्षित है। यहां पहुंचने के लिए न तो कायदे की सड़क है और न ही यहां बेहतर इंतजाम है। इसे पर्यटनस्थल के रूप में विकसित कर दिया जाए तो ऐसी धरोहर संरक्षित भी होगी और अन्य व्यवस्थाएं करने से राजस्व भी मिलेगा। इतना ही नहीं बहुआर जैसे पिछड़े गांव के लोगों को रोजगार भी मिलेगा। हालांकि पहले की तुलना में काफी ज्यादा काम हुआ है। यहां पानी की व्यवस्था हो चुकी है, शौचालय निर्माण का काम चल रहा है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण है पहाड़ी
कंडाकोट की पहाड़ी ऐतिहासिक ही नहीं औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। कई बीमारियों को एक साथ ठीक करने की विशेषता वाले पारिजात के हजारों पौधे हैं। इसी तरह मुरेरा, पथरचट्टी, वन तुलसी आदि के भी पर्याप्त संख्या में पौधे हैं। अगर इन स्थलों का संरक्षण और विकास हो तो आस-पास के लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।