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जनाब ! अब भी नहीं चेते तो विलुप्त हो जाएंगी नदियां

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : कहा जाता है कि पूर्वजों का नदियों से शरीर-श्वांस का रिश्ता था।

By JagranEdited By: Published: Sat, 21 Apr 2018 11:12 PM (IST)Updated: Sat, 21 Apr 2018 11:12 PM (IST)
जनाब ! अब भी नहीं चेते तो विलुप्त हो जाएंगी नदियां
जनाब ! अब भी नहीं चेते तो विलुप्त हो जाएंगी नदियां

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : कहा जाता है कि पूर्वजों का नदियों से शरीर-श्वांस का रिश्ता था। नदियों के किनारे समाज विकसित हुआ, बस्तियां बढ़ी, खेती हुई और अनाज का उत्पादन हुआ। जिससे आज हम व हमारा विकसित हुआ। ..लेकिन विडंबना इस बात की है कि हम जीवनदायिनी नदियों को भूलते चले जा रहे हैं। इंसान मशीनों की खोज करता रहा, अपने सुख-सुविधाओं व कम समय में ज्यादा काम की जुगत तलाशता रहा लेकिन जीवनदायी नदियों को भूलता गया। जिसका हश्र है कि सोनांचलवासियों के लिए जीवन का आधार कही जाने वाली विजुल, पांडू जैसी नदियां गुम होने के कगार पर हैं।

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वहीं सोन, कनहर, कर्मनाशा, रेणु, बेलन समेत अन्य महत्वपूर्ण नदियों पर अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। आधे अप्रैल में ही जहां कुछ नदियां सूख गई हैं वहीं कुछ सूखने की कगार पर हैं। इससे जल संकट के साथ ही पर्यावरण को भी खतरा है। गत कुछ दशकों के दौरान समाज व सरकार ने नदियों को बचाने के लिए तमाम परिभाषाएं, मापदंड, योजनाओं को गढ़ा, लेकिन विडंबना है कि उतनी ही तेजी से इनकी पावनता और पानी दोनों नदियों से लुप्त होता गया।

सोनांचल की नदियों की स्थिति देखकर यह कहना गलता नहीं होगा कि अगर अब भी नहीं चेते तो यहां की कई नदियां इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएंगी। इसलिए आज सभी अर्थ डे मनाने के साथ ही नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए संकल्प लें और आगे आएं।

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बेलन नदी

चतरा ब्लाक के रेटी गांव से निकलने वाली बेलन नदी का अस्तित्व संकट में है। आलम यह है कि नदी का मुख्य बांध बंजरिया में बना है। बांध से लेकर राब‌र्ट्सगंज ब्लाक तक करीब 30 किमी के दायरे में नदी में कहीं-कहीं पानी है। घोरावल से होते हुए बहने वाली इस नदी में अगर थोड़ा बहुत कहीं पानी है भी तो वह इतना ही है कि मवेशी भी अपनी प्यास नहीं बुझा सकते।

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रेणु नदी

छत्तीसगढ़ राज्य से निकलकर जिले से होकर बहने वाली रेणु नदी की स्थिति कुछ हद तक ठीक है। क्योंकि इस नदी पर दो बड़े डैम बने हैं। रिहंद और ओबरा। रिहंद में जब भी बिजली उत्पादन होता है तो पानी ओबरा डैम में आता है। यानी इस नदी में गर्मी के दिनों में भी पानी छोड़ा जाता है।

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विजुल नदी

सबसे खराब स्थिति तो इसी नदी की है। आलम यह है कि मध्य प्रदेश से आने वाली विजुल नदी के पानी की धारा जिले में आते ही सुस्त हो जाती है। खेवंधा में बालू के खनन के लिए मशीनी प्रयोग और ट्रकों की आवाजाही के लिए जो रास्ता बनाया गया उससे नदी का आकार भी सिमट गया है। यूं कह लें कि नदी बस नाम की रह गई है। देखने से तो नाले की तरह ही लगती है। भाठ क्षेत्र के लिए जीवन का आधार कही जाने वाली इस नदी का अस्तित्व खतरे में है। नदी में मुश्किल से आधा फीट पानी बचा होगा।

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पांडू नदी

कोन क्षेत्र के कुड़वा स्थित पांडू चट्टान से निकली इस नदी का अस्तित्व तो पूरी तरह समाप्त होने के कगार पर है। नदी के तटवर्ती इलाकों में कब्जा करके खेती और अन्य उपयोग करने की वजह से नदी का आकार भी सिमट गया है। वहीं सिल्ट की सफाई न होने से गंदगी के कारण नदी पट चुकी है। दूर से देखने पर पता ही नहीं चलता कि यह नदी है।

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कनहर नदी

छत्तीसगढ़ के जसपुर से निकलने वाली कनहर नदी दुद्धी क्षेत्र में अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। आलम यह है कि नदी में पानी न के बराबर ही है। नदी का दायरा भी दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। वहीं ठेमा और लउवा नदी तो पूरी तरह से सूख चुकी है।

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कर्मनाशा नदी

बिहार के रोहतास से निकलने वाली कर्मनाशा नदी जिले की प्रमुख नदियों में से एक है। ..लेकिन इनदिनों इसके अस्तित्व पर संकट के बादल छाये हैं। नगवां ब्लाक से होकर चंदौली की ओर बहने वाली इस नदी में न तो पर्याप्त पानी है और न ही सफाई का इंतजाम। कई जगह तो नदी पूरी तरह से सूख चुकी है। जहां नदी गहरी है वहां पानी थोड़ा-बहुत ही है।

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सोन नदी

मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलने वाली सोन नदी जिले के सबसे ज्यादा क्षेत्रों से होकर गुजरती है। जुगैल, चोपन, कोन होते हुए बिहार के पटना में पहुंचकर गंगा में मिलती है। बरसात के दिनों में जब उफान पर यह नदी होती है तो हर किसी को लगता है कि यहां पानी कभी नहीं सूखता होगा। ..लेकिन गर्मी आते ही नदी सूख जाती है। आलम यह है कि जहां पानी है भी तो काफी कम मात्रा में।

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मलिया नदी

दुद्धी तहसील क्षेत्र के विभिन्न गांवों से होकर गुजरने वाली मलिया नदी की हालत काफी खराब है। आलम यह है कि हरनाकछार से लेकर जोरकहू पिकनिक स्थल तक नदी में कहीं भी पानी नहीं है। जबकि यह नदी बीते वर्षों में बारहों महीने लबालब भरी रहती थी। महुली, पतरिहा, कोरगी समेत आस-पास के गांवों में इंसान के साथ-साथ पशुओं के जीवन की कभी आधार कही जाने वाली इस नदी का अस्तित्व संकट में है।


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