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जयदेव के श्रृंगार व प्लासी का गौरव जख्मी

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : देश की महान रचनाओं में श्रृंगार का प्रतीक बने पलाश की हालत जनपद

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Mar 2018 08:25 PM (IST)Updated: Wed, 21 Mar 2018 08:44 PM (IST)
जयदेव के श्रृंगार व प्लासी का गौरव जख्मी
जयदेव के श्रृंगार व प्लासी का गौरव जख्मी

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : देश की महान रचनाओं में श्रृंगार का प्रतीक बने पलाश की हालत जनपद की वनभूमि पर खूबसूरती की छटा बिखेर पाने में नाकाम साबित हो रही है। बसंत के बाद पेड़ों पर जब हरियाली लद जाती है तो पलाश की सारी खूबसूरती बेसुध हो जाती है। औषधीय गुणों व रोजगार सृजन में भरपूर क्षमता रखने वाले पलाश के घनत्व को बढ़ाने या उसके व्यावसायिक उपयोग करने में वन विभाग की घोर लापरवाही उजागर होती नजर आ रही है। सिमटता गया पौधों को घनत्व

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जनपद के कुल क्षेत्रफल में 53 फीसद हिस्सेदारी वनभूमि की है। यह हिस्सेदारी 20 साल पूर्व में और अधिक रही है लेकिन वर्तमान जरूरतों के कारण इसका दायरा सिमटता गया और यह लगभग आधे पर आकर टिक गया है। वैसे, जनपद में वन विभाग के चार प्रभाग हैं। इनके प्रयास से हर साल हजारों हेक्टेयर वनभूमि पर करोड़ों पौधों का रोपण किया जा रहा है। लेकिन वनों की स्थिति यही बयां कर रही है कि अवैध कटान व पौधों के रख-रखाव के प्रति घोर लापरवाही ने वनों का घनत्व लगातार कम ही होता गया है। सोनभद्र, रेणुकूट, ओबरा सहित कैमूर वन्य जीव प्रभाग में पलाश की मौजूदा स्थिति साफ दिखाई दे रही है। इसमें भी रेणुकूट प्रभाग में पलाश पूर्व की स्थितियों से काफी कम हुआ है। पलाश के ऐतिहासिक महत्व

12वीं शताब्दी के महान रचनाकार जयदेव ने अपनी कृति गीत गो¨वद में पलाश का जिक्र कुछ इस प्रकार किया है। 'युवजन-हृदय-विदारण-मनसिज-नखरुचि-¨कशुकजाले विहरति हरिरिह सरस वसन्ते..।' यानी देखो, देखो सखी! इन प्रफुल्लित ढाक (पलाश यानि ¨कशुक) के पुष्पों की काति कामदेव के नख के समान दिखायी दे रही है। इसके साथ ही पलासी पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में है। यहां पर 1757 में युद्ध हुआ था। पलाश असल में बंगाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है फूलों का इलाका', ¨हदी और उर्दू में पलाश को कभी-कभी पलासी भी कहा जाता है। रसायुक्त रंगों का बेहतर विकल्प

होली के अवसर पर हर साल बहुप्रचारित ढंग से रसायनयुक्त रंगों के प्रयोग नहीं करने पर बल दिया जा रहा है। ऐसे में पलाश के फूल में औषधीय रंग बनने गुण होने के कारण इसका उपयोग बड़े स्तर पर किया जा सकता है। इस संबंध में रेणुकूट वन प्रभाग के अधिकारी अशोक कुमार ¨सह ने बताया कि पेड़ों में कमी तो नहीं आयी है और न ही पलाश के पेड़ खास उपयोगी हैं। हां एक बात जरूर है कि इसके फूल से हर्बल रंग बनाया जा सकता है। इसे व्यापक रूप में फैलाया भी जा सकता है। इको टूरिज्म को बेहतर विकल्प

जनपद में बहुत ऐसे स्थल हैं जो प्राकृतिक रूप से सुंदर हैं। ऐसे में पलाश के पौधों को अधिक से अधिक लगाकर ऐसे स्थलों को और खूबसूरत बनाया जा सकता है। वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, हाथीनाला, जोरकहू जैसे कई स्थल हैं, जहां की सुंदरता में पलाश चार चांद लगा सकता है।


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