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सुविधाएं मिलें तो हम भी बोलेंगे चक दे इंडिया

ग्रामीण क्षेत्र में भी प्रतियोगिता हमेशा होती रहती है। जिनके लिए एक अच्छे ढंग का स्टेडियम का निर्माण भी होना चाहिए। साथ ही नेहरू विकास केंद्र द्वारा खेल के संबंध में क्षेत्रों में बराबर सूचनाओं का संप्रेषण किया जाना चाहिए। जिससे लोगों में खेल के प्रति रुचि बढ़ती रहे। सही ढंग से देखा जाए तो खिलाड़ियों को उनके खेल की सामग्री भी नहीं मिलती है। इस पर ध्यान देना चाहिए।

By JagranEdited By: Published: Fri, 06 Dec 2019 12:55 AM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 06:11 AM (IST)
सुविधाएं मिलें तो हम भी बोलेंगे चक दे इंडिया
सुविधाएं मिलें तो हम भी बोलेंगे चक दे इंडिया

जासं, सोनभद्र : तियरा स्थित विशिष्ट स्टेडियम में तीरंदाजी का छात्रावास है। यहां बालक और बालिकाओं के लिए छात्रावास का इंतजाम किया गया है। यह यूपी का इकलौता छात्रावास है जहां तीरंदाजी का प्रशिक्षण दिया जाता है। दोनों के लिए 20-20 सीट हैं। यहां कोच भी हैं। खिलाड़ी भी मेहनत कर रहे हैं। इसका परिणाम भी सामने आता है। यहां के करीब आधा दर्जन से अधिक खिलाड़ियों ने नेशनल खेला हुआ है। एक बार फिर से नेशनल की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन उसी में वालीबाल का बना कोर्ट कोच के अभाव में शोपीस बना है। यहां कुश्ती और बास्केटबाल का भी परिणाम बहुत अच्छा नहीं है। यानी अगर यहां सबकुछ मिले तो तीरंदाजी की तरह इन खेलों के भी खिलाड़ी बुलंदी को छुएंगे।

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करोड़ों रुपये की लागत से बने तियरा स्टेडियम में छात्रावास तो केवल तीरंदाजी का है लेकिन बाकी यहां, वालीबाल, बास्केटबाल, फुटबाल, एथलेटिक्स आदि खेलों की मान्यता है। पॉवर लिफ्टिग के लिए लाखों रुपये का सामान रखा गया है। लेकिन कोच के अभाव में किसी को प्रशिक्षण नहीं मिल रहा है। कुश्ती के कोच स्वयं क्रीड़ा अधिकारी हैं लेकिन गत दो साल में कोई भी खिलाड़ी ऐसा नहीं निकला कि वह नेशनल स्तर पर खेला हो। यानी साफ है कि यहां इसमें भी कमी है। यहां सुविधाएं मिलनी चाहिए। इसी तरह वालीबाल के लिए कोर्ट बना है लेकिन उसके भी कोच नहीं है। मिनी स्टेडियम के कक्ष में रखा है भूसा

राब‌र्ट्सगंज के मुख्य शहर में खिलाड़ियों के लिए एक मिनी स्टेडियम बनाया गया है। शिवाजी मिनी स्टेडियम के नाम से 53.18 लाख रुपये की लागत से इस स्टेडियम का निर्माण कराया गया है। एक बड़ा हाल है और अंदर बैडमिटन के दो कोर्ट हैं। कहने को तो यह चालू हालत में है लेकिन स्थिति काफी खराब है। केवल हाल में खेलने की सुविधा है। बाकी अगर यहां पहुंचने वाले खिलाड़ियों को शौच लगे तो उन्हें अपने घर जाना पड़ेगा। क्योंकि पानी ही नहीं है। खिलाड़ियों के विश्राम करने वाले कक्ष में भूसा भरा गया है। जागरण की टीम ने जब पड़ताल किया तो पता चला कि बेसहरा पशुओं के लिए यहीं पर भूसा रखा जाता है। बाहर मैदान में तो ऐसी स्थिति है कि न तो उसमें बच्चे खेल सकते हैं और न ही सुबह कोई मार्निंग वॉक कर सकता है। अगर नंगे पांव चलने की कोशिश किए तो पांव छिल जाएंगे, क्योंकि मोरम के बड़े-बड़े टुकड़े हैं। टूटी स्टिक, उधार के मैदान से निकले खिलाड़ी

पूर्वांचल में अगर राष्ट्रीय खेल के मामले में कहीं का नाम लिया जाता है वह गाजीपुर के करमपुर का। उसके बाद हॉकी की नर्सरी के रूप में सोनभद्र के चुर्क का नाम है। यहां टूटी हुई स्टिक से, उधार के मैदान में अभ्यास कर दो दर्जन से अधिक खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लिया। कईयों ने इसे के दम पर नौकरी भी पाई। इतना ही नहीं कई साई जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में चयनित होकर अपना भविष्य संवारने में लगे हैं। बताते हैं कि यहां के हाकी खिलाड़ी स्वदीप श्रीवासतव ने अंडर -19 में यूपी टीम की तरफ से कप्तानी किया था और चुर्क के ही निखिलेश ने अंडर-17 में यूपी की ओर से कप्तान की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। लेकिन अब खेल का मैदान न होने के कारण अपने को हारा हुसा महसूस करने लगे हैं। अगर इन्हें खेल का मैदान मिले, एस्टोटर्फ की सुविधा हो तो ये भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में नाम रोशन करेंगे। ग्रामीण क्षेत्र में भी स्टेडियम की हालत खराब

खिलाड़ी शहर से लेकर गांव तक हैं, लेकिन खेल का मैदान शायद ही कहीं का बेहतर हो। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में बने ग्रामीण स्टेडियमों की हालत अच्छी नहीं है। घोरावल ब्लाक क्षेत्र के में कहीं भी ठीक स्टेडियम नहीं है। क्षेत्र में गर्मी तथा सर्दी के मौसम में क्रिकेट टूर्नामेंट वालीबाल प्रतियोगिताएं होती रहती हैं। क्षेत्र के भगाही, केवली, बंधा, चिगोरी शिवद्वार, कन्हरा, गुरेठ, गुरुवल, दुबखिली, मुडीलाडीह, कोहरथा, मिझुन, पड़वनिया आदि स्थानों पर प्राय: खेल होते रहते हैं। इसी तरह वैनी में जहां खेल होना चाहिए वहां पशु बांधे जा रहे हैं। क्या कहते हैं खिलाड़ी

सोनांचल में खिलाड़ियों की कमी नहीं है। हमारे चुर्क से कई खिलाड़ी निकले हैं। उनमें कइयों को नौकरी भी खेल कोटे से ही मिली है। मैने स्वयं यूपी टीम की ओर से खेला है। कप्तान भी रहा हूं। अगर यहां हाकी के लिए मैदान मिले तो सितारे जरूर चमकेंगे।

-स्वदीप श्रीवास्तव, हाकी पूर्वांचल में चुर्क को हाकी की नर्सरी कहा जाता है। यहां से खेलकर हम लोगों ने राष्ट्रीय स्तर तक का सफर किया। काफी प्रयास किया गया कि यहां के खिलाड़ियों के लिए सुविधा मिले, खेल का मैदान मिले लेकिन नहीं मिला। मैदान के अभाव में हाकी दम तोड़ रही है।

- निखिलेश गुप्ता, हाकी। यहां खिलाड़ियों की कमी नहीं है। अगर सुविधा मिले, संसाधन मिले तो हर विधा के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान बनाएंगे। खिलाड़ियों को खेल के दौरान ही स्थानीय परियोजनाओं में प्लेसमेंट भी मिलना चाहिए। पॉवर लिफ्टिग के लिए बेहतर व्यवस्था हो।

-व्यासचंद, पॉवर लिफ्टर। क्या कहते हैं कोच

ग्रामीण क्षेत्र में भी प्रतियोगिता हमेशा होती रहती है। जिनके लिए एक अच्छे ढंग का स्टेडियम का निर्माण भी होना चाहिए। साथ ही नेहरू विकास केंद्र द्वारा खेल के संबंध में क्षेत्रों में बराबर सूचनाओं का संप्रेषण किया जाना चाहिए। जिससे लोगों में खेल के प्रति रुचि बढ़ती रहे। सही ढंग से देखा जाए तो खिलाड़ियों को उनके खेल की सामग्री भी नहीं मिलती है। इस पर ध्यान देना चाहिए।

-श्रीपति त्रिपाठी, कोहरथा के वालीबॉल कोच। निश्चित तौर पर हाकी के खिलाड़ी यहां काफी ज्यादा संख्या में निकलते हैं। जुगाड़ की हांकी और उधार के ग्राउंड में खेलकर कइयों ने राष्ट्रीय स्तर पर नाम किया है। यहां एस्टोटर्फ वाला खेल मैदान चाहिए। अगर यह मिले तो निश्चित ही प्रतिभाएं निखकर सामने आएंगी। साथ ही जो खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर बढि़या प्रदर्शन करते हैं उनको स्थानीय परियोजनाओं में नौकरी भी मिले।

-दिग्विजय प्रताप सिंह, हाकी के कोच। विशिष्ट स्टेडियम में तीरंदाजी का छात्रावास है। बाकी बास्केटबाल, वालीबॉल का कोर्ट बना हुआ है। वालीबाल के कोच नहीं है। पॉवर लिफ्टिग के लिए पूरे इंतजाम हैं। कई खिलाड़ियों ने यहां से निकलकर देश में नाम रोशन किया है। यहां से निकले कई खिलाड़ियों ने विभिन्न विभागों में नौकरी भी खेल कोटे से पाई है। खिलाड़ियों को जागरूक किया जा रहा है। वालीबॉल के कोच की जरूरत है।

-देवी प्रसाद, क्रीड़ा अधिकारी एवं कुश्ती के कोच।


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