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पेट्रो मूल्यवृद्धि का विकल्प होगा इथेनाल

इनदिनों बेरोजगारी, प्रदूषण व पेट्रोलियम पदार्थों के आसमान छूते दामों के बीच बेतहर विकल्प की तलाश शुरू हो गई है। ये समस्याएं ऐसी हैं जिसे सिर्फ नियमों के बंधन में बांधकर सही नहीं किए जा सकते।

By JagranEdited By: Published: Wed, 03 Oct 2018 04:54 PM (IST)Updated: Wed, 03 Oct 2018 09:43 PM (IST)
पेट्रो मूल्यवृद्धि का विकल्प होगा इथेनाल
पेट्रो मूल्यवृद्धि का विकल्प होगा इथेनाल

जागरण संवाददाता, सोनभद्र: इनदिनों बेरोजगारी, प्रदूषण व पेट्रोलियम पदार्थों के आसमान छूते दामों के बीच बेहतर विकल्प की तलाश शुरू हो गई है। ये समस्याएं ऐसी हैं जिसे सिर्फ नियमों के बंधन में बांधकर सही नहीं किये जा सकते। इसका परिणाम हमें आसपास के बदलते माहौल में दिख भी रहा है। ऐसे में इथेनाल एक ऐसा पदार्थ है जिससे ऊपर की तीनों ही समस्याओं से उबरा जा सकता है। हालांकि इसके लिए केंद्र सरकार ने पहल भी शुरू कर दी है जिसका सकारात्मक असर दिखने भी लगा है। इस प्रयास में सोनभद्र जिले सहित पूर्वांचल के समूचे जिलों की स्थितियां इथेनाल उत्पादन के अनुकूल हैं। क्यों जरूरी हो गया इथेनाल

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दरअसल, पेट्रोल व डीजल की बढ़ती महंगाई व उत्पादों के उपयोग से बढ़ता प्रदूषण इन दोनों ही स्थितियों से एक संकट खड़ा होने लगा है। एक तरफ सस्ते ईंधन की मांग बढ़ रही है तो दूसरी ओर प्रदूषण जनित बीमारियों का लगातार जन्म होने लगा है। ऐसे में इस भीषण तबाही का विकल्प किसानों के बीच फसलों के अवशेष के रूप में मौजूद दिखाई देने लगा है। साथ ही वनों की झाड़ियां भी पेट्रोल व डीजल का विकल्प बन सकती हैं। सोनभद्र में स्थितियां अनुकूल

बता दें कि इथेनाल के लिए पराली व वनों के अवशेष यानि झाड़ियां सबसे पहले जरूरी हैं। इस मामले में सोनभद्र की स्थितियां अनुकूल हैं। यहां 70 फीसद से अधिक वन क्षेत्र और लाखों हेक्टेयर में धान सहित दूसरी फसलें उगाई जाती हैं। इसलिए सेकेंड जेनरेशन के इथेनाल के लिए बेहतर कच्चे माल उपलब्ध हो सकेंगे। इसके साथ ही वनगिरि व आदिवासी युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। सबसे बड़ी बात है कि यहां बिजली व पानी की सुलभता है। पड़ोसी राज्यों में बड़े स्तर पर धान के उत्पादन किये जाते हैं जिसकी पराली ज्यादातर जला दी जाती है। भयावह प्रदूषण से मुक्ति

अब यह किसी से छिपी बात नहीं है कि अनपरा-ओबरा-¨सगरौली के वातावरण में जहरीली गैसों ने किस तरह से तांडव मचाना शुरू किया है। ऐसे हालात बनाने में कोयला, परियोजना की नीतियां जिम्मेदार हैं तो कहीं न कहीं अब पराली के जलते स्वरूप भी दोषी सिद्ध होने लगे हैं। इसलिए केंद्र सरकार ने ऐसे विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया है। वहीं स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले करोड़ों रुपये बच भी सकेंगे। इथेनाल में दिख गया विकल्प

देश का कानपुर पहला शहर है जहां पर इथेनाल से बसों का संचालन शुरू हो गया है। यहां पर इथेनाल का उत्पादन भी शुरू हो गया है। इस संबंध में खुद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बताया है कि एक टन पराली में चार सौ लीटर इथेनाल बनाया जा सकेगा। देश के विभिन्न हिस्सों में प्लांट बनाने की योजना पर काम भी शुरू हो गया है।


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