सूखे की मार झेल रहीं जनपद की पेयजल परियोजनाएं
जागरण टीम, सोनभद्र : जनपद के लगभग सभी विकास खंडों में स्थित जलनिगम की पेयजल परियोजनाएं सूखे
जागरण टीम, सोनभद्र : जनपद के लगभग सभी विकास खंडों में स्थित जलनिगम की पेयजल परियोजनाएं सूखे व समय की मार के चलते बंद हैं। इसमें जो चल भी रही हैं, वह बंधों में बचे-खुचे पानी की बदौलत। इसमें से भी ज्यादातर परियोजनाएं काफी पुरानी हैं, जो अपनी पूर्ण अवधि पूरी कर चुकी हैं। अब अपने पुनर्गठन के लिए शासन के इरादे का इंतजार कर रही हैं। यहां एकाध ऐसी परियोजनाएं हैं जिसके जरिए सौ से अधिक गांवों को पानी मुहैया कराया जाता रहा है लेकिन अब उससे एक गांव भी संतृप्त नहीं हैं। इसमें शामिल हैं शाहगंज कड़िया व बढ़ौली कुशाही। इससे पेयजल की समस्या गांवों में बढ़ रही है। अभी तो गर्मी की शुरुआत है, इसके साथ ही पानी की समस्या देखी जा रही है। आने वाले दिनों में पेयजल संकट को लेकर ग्रामीण ¨चतित होने लगे हैं। इन जिले में हैं परियोजनाएं
ऊंचीखुर्द सरई, सरई, मझिगवां, सिल्थम, जलखोरी कला, बरबसपुर, सैदा, धर्मदासपुर, अहेई, गिरिया, चपैल, बेलगाई, रामगढ़, कसारी, बिल्ली-मारकुंडी, कोन, कोटा, बीजपुर, कचनरवा, चपकी, जरहां, मुर्धवा, धरसड़ा, पगिया, कड़यिा शिवद्वार, चट्टीबघोर, बलिहारी, तेंदुआ, मांची, सेमरिया, वैनी, दुबेपुर, धूर्पा, महुली, ¨वढमगंज, बढ़ौली कुशाही। यहां से लोगों को पानी देने की व्यवस्था तो की गई है लेकिन इसमें अधिकांश की स्थिति खराब ही है। ये है परियोजनाओं की स्थिति
कोन पेयजल योजना 1981 में 14 गांव के लिए शुरू की गई थी। अब तीन गांवों में जलापूíत की जा रही है, वह भी कभी-कभी। इससे पांच गांवों महुली, पोलवा, हिराचक, फूलवार, डुमरा में जलापूíत होती रही है। धूर्पा से आपूíत बंद है। शिवद्वार पेयजल योजना ठप है। इससे 28 गांवों में जलापूíत ठप है। वहीं मुक्खा पेयजल योजना 1972 में बनी। कुछ ही दूरी पर अमिलौधा में ओवरहेड टैंक बना लेकिन गत 10 सालों से ठप पड़ा है। करमा परियोजना 1981 में बनी। इससे कुछ गांवों में पानी की आपूíत की जा रही है। कोटा ग्राम समूह पेयजल योजना से पानी 11 में से सात टोलों में जाता है, वह भी केवल सुबह। इसकी स्थापना 1978 में हुआ था। इसलिए बंद हैं परियोजनाएं
जनपद की ज्यादातर नदियां बरसात के पानी पर ही निर्भर हैं। इसमें से बेलन, बकहर, कनहर जैसी नदियां प्रमुख हैं और ज्यादातर परियोजनाएं इन्हीं नदियों से संचालित भी रही हैं। वहीं जिन परियोजनाओं का संचालन बंधों से है उसमें भी बरसात अगर अच्छी नहीं हुई तो सूखे की कगार पर पहुंच जाती है। मिली जानकारी के मुताबिक बंद होने के प्रमुख कारणों में निजी स्तर पर बड़े पैमाने में पं¨पग सेटों की स्थापना भी है। इससे नदियों के पानी का इस्तेमाल खेतों की ¨सचाई के लिए किया जाता है। तकनीकी कारण भी हैं जिम्मेदार
कई पेयजल परियोजनाओं की पाइप लाइनें पुरानी होने के कारण भी पानी गांवों तक नहीं पहुंच पाता। स्थिति यह है कि कनहर नदी का पानी बिना फिल्टर सीधे गांवों में आपूíत की जाती रही है। कई परियोजनाओं के फिल्टर वाटर टैंक दशकों से खराब पड़े हैं। विभागीय कर्मचारियों की लापरवाही भी बड़ा कारण है। वहीं कई जगह तो बिजली का केबल काफी दिनों से खराब है और तो और विभागीय कर्मचारियों द्वारा मशीन के कलपुर्जे तक खोल लिये गये हैं। समस्याओं में एक यह भी है कि कई जगह तो आधा पानी सड़कों पर बहा दिया जाता है। खराब पाइपों को बदला तक नहीं गया है। इस समय होती है पानी की भीषण समस्या
जनपद के सभी पेयजल परियोजनाओं से जुड़े गांवों की पड़ताल हुई तो पता चला कि मार्च से लेकर जून तक के चार महीने अति कष्टदायक होते हैं। इन महीनों में लोगों को पेयजल के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। गांव में लगे हैंडपंप भी जवाब देने लगते हैं। भू-गर्भ जल का स्तर काफी नीचे होने के कारण दूसरे सभी विकल्प ग्रामीणों के आगे बौने साबित होने लगते हैं। सच्चाई तो यह है कि अभी से ही कई गांवों के सैकड़ों हैंडपंप जवाब दे गये हैं। परियोजनाएं ऐसे हैं संचालित
जलनिगम द्वारा एकल ग्राम परियोजनाओं के अंतर्गत जलनिगम व ग्राम पंचायतों से पेयजल परियोजनाओं का संचालन किया जाता है। इसमें जलनिगम द्वारा सात और ग्राम पंचायतों द्वारा 16 पेयजल परियोजनाएं संचालित हैं। इसमें ग्राम समूह परियोजनाएं 13 हैं। बोले ग्रामीण
पेयजल परियोजनाओं से जुड़े ग्रामीणों ने बताया कि विभागीय उदासीनता दूर हो तो समस्याओं पर ज्यादा काबू पाया जा सकता है। प्राकृतिक समस्याओं के साथ ही मानवीय कारक भी ज्यादा जिम्मेदार हैं। मुक्खा फाल के संबंध में बताया कि यहां पानी की कमी नहीं है। इसके लिए यहां फाल का पानी लिफ्ट करके ओवरहेड टैंक में भर दिया जाय तो क्षेत्र के समस्त गांव पानी से राहत पा सकेंगे। कई जगहों पर ग्रामीणों ने पाइप लाइन को बिछाने की मांग की है।
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गर्मी के दिनों में पानी का संकट अपने चरम पर होता है। दो-चार बाल्टी पानी देकर अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर ली जाती है। इसमें सुधार की बड़ी जरूरत है। -पप्पू यादव, फूलवार।
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पेयजल परियोजनाओं में बिजली कटौती भी बहुत बड़ा कारण है। इसके साथ ही यहां जेनरेटर के न होने से बुची-खुची कोर कसर भी खत्म हो जाती है।
- संजय गुप्त, महुली।
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अधर में पड़ी पेयजल परियोजनाओं को शीघ्रता से मरम्मत कराने की जरूरत है। प्रशासनिक उदासीनता से हम सभी ग्रामीणों को परेशानी हो रही है। अब यह सहन से बाहर हो गया है।
-शिवराज गिरि, सतद्वारी।
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पेयजल संकट से समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। जीवन का आधार पानी ही है। ऐसे में परियोजनाओं का खराब रहना हम सबके लिए शुभ संकेत नहीं है।
- सतीश कुमार, सतद्वारी।
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राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते यहां की परियोजनाएं अपना लक्ष्य पाने में असक्षम हैं। लगातार बढ़ती आबादी के सापेक्ष परियोजनाओं को विकसित नहीं किया गया।
-शिवम् चौबे, बढ़ौली।
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पेयजल की आपूíत में जमकर मनमानी की जा रही है। गांवों में पानी आपूíत करने में भी भेदभाव किया जा रहा है। इसे सुधारने की सख्त जरूरत है।
- प्रेमनाथ जायसवाल, वैनी।
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परियोजना चालू है। लेकिन यहां परियोजनाकर्मी किसानों से अधिक पैसा लेकर गांवों को पानी ¨सचाई के लिए दे देते हैं। ऐसे में 10 मिनट ही गांवों में पानी दिया जा रहा है।
-बच्चा यादव, दुबेपुर।
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अभी ज्यादा दिक्कत तो नहीं है लेकिन आगामी महीनों में दिक्कत होगी। क्योंकि हर साल पेयजल संकट से ग्रामीण जूझते आ रहे हैं। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि मई व जून के महीने परेशान करने वाले होंगे।
- राहुल चौरसिया, बढ़ौली।