विलुप्त होते कौशल को बचाने में जुटी बच्चों की टोली
गदा, जोड़ी, पिरामिड, ढाल, भाला व तलवारबाजी जैसे खेलों का नाम कभी भारतीय खेलों में सबसे ऊपर लिया जाता था। कभी राज दरबारों में इन खेलों की प्रतियोगिताएं बड़े ही प्रमुखता से करायी जाती थी। ..लेकिन समय के चक्र में ये खेल अब विलुप्त होते नजर आ रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे तो अब इन खेलों को खेल तक नहीं मानते। ऐसी स्थिति में अगर नन्हें कदम विलुप्त होते इन खेलों की महत्ता को बरकरार रखने में आगे बढ़ें तो सुखद आश्चर्य होना स्वाभाविक है।
जासं, ओबरा (सोनभद्र): गदा, जोड़ी, पिरामिड, ढाल, भाला व तलवारबाजी जैसे खेलों का नाम कभी भारतीय खेलों में सबसे ऊपर लिया जाता था। कभी राज दरबारों में इन खेलों की प्रतियोगिताएं बड़े ही प्रमुखता से कराई जाती थी। ..लेकिन समय के चक्र में ये खेल अब विलुप्त होते नजर आ रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे तो अब इन खेलों को खेल तक नहीं मानते। ऐसी स्थिति में अगर नन्हें कदम विलुप्त होते इन खेलों की महत्ता को बरकरार रखने में आगे बढ़े तो सुखद आश्चर्य होना स्वाभाविक है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं सूबे के सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाले जनपद सोनभद्र के ऐसे क्षेत्र की जिसे लोग कालापानी कहते हैं। उस क्षेत्र का नाम है करमसार। यहां स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय के एक दर्जन बच्चे राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक लालचंद्र गुप्ता एवं मनीष पटेल के सानिध्य में सांस्कृतिक व्यायाम वाले कौशल को बचाने में जुटे हैं। यहां के एक दर्जन बच्चों का खेल परिषदीय स्कूलों की प्रतियोगिताओं में शामिल तो सीधे तौर पर नहीं किए जाते लेकिन इन बच्चों का प्रदर्शन देखने के लिए बुलावा जरूर आता है। किसी प्रतियोगिता का शुभारंभ हो या समापन। मुख्य अतिथि का स्वागत करना हो या किसी आयोजन का आगाज। ये बच्चे इन पारंपरिक खेलों से सबको खुश कर देते हैं। यहां के शिक्षक बताते हैं कि इस खेल की बदौलत यहां के बच्चों का नाम मंडल के हर आयोजनों में लिया जाता है। उनका उद्देश्य है ऐसे पुराने खेल जो अब विलुप्त होते जा रहे हैं उन्हें जीवित रखना। पारंपरिक खेलों के हैं चैंपियन
जनपद सहित मीरजापुर मंडल के परिषदीय खेलों में जैसे ही उच्च प्राथमिक विद्यालय करमसार का नाम आता है तो लोगों को समझने में देर नहीं लगती कि अब शारीरिक कौशल का लुप्त होता स्वरूप दिखाई पड़ेगा। इस विद्यालय की टोली जब गदा, जोड़ी, पिरामिड, ढाल, भाला, तलवार के साथ ले¨जग डंबल जैसे पुराने व्यायाम प्रदर्शन करती है तो हर कोई अभिभूत हो जाता है। इस टोली के बच्चों के तालमेल से निकलने वाला संगीत बरबस ही सभी को अपनी ओर खींच लेता है। इस टोली के बच्चे अंगद, महेश, शकुंतला, मंजू, पंकज, अंकित, रोहित, अजय एवं अनीता सहित टोली के सभी सदस्य मीरजापुर मंडल में चर्चित हैं। यह टोली गत पांच वर्षों के दौरान पीटी, समूह गान, लोकगीत, अन्ताक्षरी, एकांकी सहित आधा दर्जन स्पर्धाओं में लगातार स्वर्ण पदक प्राप्त कर रहे हैं। रच डाले हैं कई गीत
बच्चों की यह टोली सर्वशिक्षा अभियान के लिए भी कारगर साबित हो रही है। राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक लालचंद गुप्ता एवं मनीष पटेल के सानिध्य में यह टोली अपने गीत गढ़ रही है जो दुर्गम आदिवासी अंचलों के बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित कर रही है। इस टोली ने अभी तक आधा दर्जन गीत रच चुकी है। इनके गीत जागरूकता वाले होते हैं।