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रेफरल सेंटर बनकर रह गया है सीएचसी घोरावल

करीब तीन लाख से अधिक की आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए घोरावल सामुदायिक स्वास्थ्य खुला है। यहां शासन से जरूरत के मुताबिक संसाधन भी मुहैया कराए गए हैं। लेकिन मैन फावर व इच्छाशक्ति के अभाव में यह अस्पताल प्राथमिक उपचार के बाद रेफरल सेंटर बनकर रह गया है। यहां न तो महिलाओं के इलाज की बेहतर व्यवस्था है और न ही बच्चों के इलाज के लिए कोई विशेषज्ञ चिकित्सक ही है। यहां तैनात कुछ चिकित्सक भी ओपीडी में समय से नहीं आते। ऐसे भी मामले सामने आते हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 09:23 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 09:23 PM (IST)
रेफरल सेंटर बनकर रह गया है सीएचसी घोरावल
रेफरल सेंटर बनकर रह गया है सीएचसी घोरावल

जासं, घोरावल (सोनभद्र): करीब तीन लाख से अधिक की आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए घोरावल सामुदायिक स्वास्थ्य खुला है। यहां शासन से जरूरत के मुताबिक संसाधन भी मुहैया कराए गए हैं लेकिन मैन पावर की कमी व इच्छाशक्ति के अभाव में यह अस्पताल प्राथमिक उपचार के बाद रेफरल सेंटर बनकर रह गया है। यहां न तो महिलाओं के इलाज की बेहतर व्यवस्था है और न ही बच्चों के इलाज के लिए कोई विशेषज्ञ चिकित्सक ही हैं। यहां तैनात कुछ चिकित्सक भी ओपीडी में समय से नहीं आते।

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बुधवार को दैनिक जागरण की टीम जब आफिस लाइव कार्यक्रम के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र घोरावल में करीब दस बजे पहुंची तो पता चला कि हाफ ओपीडी ही है। उस समय इमरजेंसी में एक डाक्टर तैनात दिखे। इसके अलावा कुछ देर के बाद करीब पौने 11 बजे एक और चिकित्सक आए। बाकी एक चिकित्सक का कोई पता नहीं चला। अधीक्षक किसी जरूरी काम से मुख्यालय गए थे। पड़ताल करने पर जानकारी मिली कि यहां हर रोज की यही स्थिति है। यहां आने वाले मरीज भी प्राथमिक उपचार तक ही कराते हैं। गंभीर मरीज स्वत: जिला अस्पताल या अन्य अस्पतालों में चले जाते हैं। रखे-रखे जंग खा रहीं एक्स-रे मशीन

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों की जांच करने के लिए लाखों रुपये की लागत से शासन ने एक्स-रे मशीन लगवाया है लेकिन मैन पावर की कमी है कि इसे चलाने वाला कोई नहीं है। तीन साल से यह मशीन रखे-रखे जंग खा रही है। कई बार उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा गया लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। नहीं है कोई विशेषज्ञ चिकित्सक

सीएचसी में मानक के अनुसार चिकित्सक भी नहीं है। यहां न तो हड्डी रोग के विशेषज्ञ हैं और न ही बालरोग विशेषज्ञ ही हैं। यहां महिला रोग विशेषज्ञ की बात कौन कहें तो महिला चिकित्सा अधिकारी की भी तैनाती नहीं है। आयुष के एक महिला चिकित्सक से किसी तरह काम चलाया जा रहा है। बेहोशी के डाक्टर न होने से आपरेशन आदि के कार्य भी नहीं होते। अस्पताल में औसतन 175 मरीज प्रतिदिन आते हैं। चिकित्सकों को छोड़ दिया जाए तो तीन फार्मासिस्ट, दो एएनएम, तीन वार्ड ब्वाय, दो स्वीपर व चार नर्स तैनात हैं। जो चिकित्सक नहीं आए उनके बारे में पता कराया जा रहा है। जितने संसाधन हैं उसमें बेहतर सुविधा देने की कोशिश की जाती है। एक्स-रे मशीन चलाने के लिए टेक्नीशियन की मांग की जा चुकी है। डीएम के स्तर से भी शासन को पत्र लिखा जा चुका है।

- डा. गुरु प्रसाद, अधीक्षक।


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