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मना खालसा जन्मोत्सव, अखंड पाठ की समाप्ति पर शबद कीर्तन

नगर स्थित गुरुद्वारा में रविवार को खालसा जन्म उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान गत दिनों से चल रहे अखंड पाठ का भी समापन किया गया। दिल्ली से आए इंदरजीत सिंह व उनकी टीम ने उपस्थित भक्तों के साथ सबद कीर्तन किया। इस दौरान लंगर का भी आयोजन किया गया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 09:31 PM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 06:23 AM (IST)
मना खालसा जन्मोत्सव, अखंड पाठ की समाप्ति पर शबद कीर्तन

जासं, सोनभद्र : नगर स्थित गुरुद्वारा में रविवार को खालसा जन्म उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान गत दिनों से चल रहे अखंड पाठ का भी समापन किया गया। दिल्ली से आए इंदरजीत सिंह व उनकी टीम ने उपस्थित भक्तों के साथ शबद कीर्तन किया। इस दौरान लंगर का भी आयोजन किया गया।

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गुरु जी के इतिहास के बारे में बताते हुए वक्ताओं ने कहा कि उन्होंने पूरे जीवन भर दूसरों के भलाई के लिए कार्य किया। 1699 में वैसाखी के दिन ही गुरु गोविद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने गुलामी व अत्याचार सहने की रीति को अपनी नियति मान चुके लोगों के स्वाभिमान को जगाया। जाति-धर्म, छूआ-छूत के कारण विखंडित हो चुके सामाजिक ढांचे को एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की। बताया कि इस दिन विभिन्न प्रदेशों से पांच अलग-अलग जातियों से पांच व्यक्तियों को अमृत पान करा कर उनके नाम के आगे सिंह लगा उन्हे पंज प्यारे की संज्ञा दी गई। सरदार जसबीर सिंह ने बताया कि गुरु गोविद जी ने अपने जीवन में 17 युद्ध लड़े। उनके युद्ध के पीछे न तो साम्राज्य की स्थापना थी न ही किसी को पराधीन करना था। वह सिर्फ सैद्धांतिक युद्ध रहे। इसके अलावा खालसा पंथ की स्थापना वक्त का तकाजा था, उस समय की राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक आवश्यकता थी। गुरुजी ने खालसा के रूप में एक ऐसे संत सिपाही की कल्पना को साकार किया जिसका प्रभु में अटूट विश्वास हो। गुरुजी के अनुसार हमें बुराइयों से लड़ना है, चाहे वह व्यक्तिगत हो या फिर सामाजिक। अपने अंदर के काम, क्रोध, लोभ मोह से टकराते हुए बाहर की सामाजिक बुराई, अंधविश्वास आदि से निबटना ही है। इस मौके पर अजीत सिंह, कमलेश सिंह, देवेंद्र सिंह, मनजीत सिंह, रनजीत सिंह, रविदर सिंह, दया सिंह, अर्जुन सिंह, संतोष सिंह आदि मौजूद थे।


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