मोबाइल पर प्रतिबंध, होती है आकस्मिक जांच
जिस मोबाइल के जरिए सैकड़ों हजारों किलोमीटर की दूरी भी नजदीक हो जाती है अपनों का हाल जानने में अहमद किरदार निभाता है वहीं मोबाइल फोन अगर जरूरत से ज्यादा प्रयोग किया जाए तो वह स्वास्थ्य के साथ ही समय को भी खाता है। बच्चों में इसकी लत इस कदर बढ़ती है कि उनका पढ़ाई में मन भी नहीं लगता और धीरे-धीरे इससे मुक्ति पाना या कम इस्तेमाल एक
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : जिस मोबाइल के जरिए सैकड़ों, हजारों किलोमीटर की दूरी भी नजदीक हो जाती है, अपनों का हाल जानने में अहम किरदार निभाता है वहीं मोबाइल फोन अगर जरूरत से ज्यादा प्रयोग किया जाए तो वह स्वास्थ्य के साथ ही समय को भी खाता है। बच्चों में इसकी लत इस कदर बढ़ती है कि उनका पढ़ाई में मन भी नहीं लगता और धीरे-धीरे इससे मुक्ति पाना या कम इस्तेमाल एक चुनौती बन जाता है। शायद यहीं वजह है कि उच्च शिक्षा निदेशालय ने कॉलेजों में मोबाइल पर प्रतिबंध का फरमान जारी किया है। यह प्रतिबंध सोनांचल के कुछ डिग्री कालेजों में पहले से ही लागू है। हां, समय की मांग के अनुरूप यहां विशेष परिस्थितियों में अभिभावकों की सहमति के बाद कालेज परिसर में मोबाइल ले जाने की अनुमति मिल जाती है वह भी मौन स्थिति में। शिक्षकों के लिए भी नियम बने हैं। उन्हें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि स्टाफ रूम में ही अपना मोबाइल रखकर जाएं। कक्षा से निकलने पर जब समय मिले तो वह मोबाइल देख सकते हैं। कक्षा के दौरान मोबाइल का इस्तेमाल पूरी तरह से प्रतिबंधित किया है। अब इसका कड़ाई से पालन कराने की तैयारी है। प्रतिबंध लगाया तो अपनों ने ही किया विरोध
जब कॉलेज की स्थापना हुई तो सभी महाविद्यालयों की तर्ज पर शुरूआत हुई। लेकिन, लेकिन कुछ ही दिन के बाद लगा कि छात्राओं का स्कूल है इसलिए यहां मोबाइल पर पाबंदी बहुत जरूरी है। बगैर इसके प्रतिबंध के दिमाग को एकाग्र नहीं किया जा सकता। ऐसे में कालेज में मोबाइल को प्रतिबंधित कर दिया गया। सभी शिक्षकों को इसका कड़ाई से पालन कराने के लिए निर्देश दिया गया। हालांकि, इस दौरान काफी विरोध हुआ। कई अपनों ने ही कहा कि ऐसे कालेज नहीं चलेगा। लेकिन, हमने अभिभावकों से संपर्क किया और उनसे सहयोग मांगा। कहा कि आपकी बेटी को सुरक्षित घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हमारी है। स्कूल से छुट्टी होने पर अभिभावकों से संपर्क साधने लगी। फिर क्या अभिभावकों का भी विश्वास बढ़ा और वे अपनी पुत्रियों को मोबाइल कालेज में न ले जाने के लिए कहा। इसके लिए समय-समय पर अचानक जांच भी की जाती है। जो छात्रा मोबाइल इस्तेमाल करते पकड़ी जाती है उसे ले लिया जाता है। फिर अभिभावक को बुलाकर सौंपा जाता है।
- मनोरमा मिश्रा, प्राचार्य, श्री प्रमोदजी महिला महाविद्यालय, कुशहरा। विशेष परिस्थितियों में मोबाइल कार्ड पर स्वीकृति
मैं गत दस साल से कालेज संचालित कर रही हूं। शुरुआत में तो जो छात्राएं मोबाइल लेकर आती थी उन्हें मना कर दिया जाता था तो वह मान भी जाती थीं, उनके अभिभावक भी इसपर कोई जवाब-सवाल नहीं करते थे। लेकिन, इधर करीब चार साल से मोबाइल से लोगों का लगाव काफी ज्यादा बढ़ा है। आलम यह है कि करीब 90 फीसद छात्राएं मोबाइल पर ज्यादा समय बिताती हैं। यह उनके भविष्य के लिहाज से ठीक नहीं है। आज के समय में किसी भी कालेज में मोबाइल को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना सबसे बड़ी चुनौती है। हमने अपने यहां एक व्यवस्था किया है कि कोई भी छात्रा कालेज परिसर में मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करेगी। शिक्षक भी कक्षा में कतई मोबाइल नहीं इस्तेमाल करेंगे। हां कुछ छात्राओं के अनुरोध पर उनके अभिभावकों से संपर्क कर जो मोबाइल और नंबर वे घर से देते हैं उसी नंबर का मोबाइल कॉलेज में लाने के लिए स्वीकृति मिलती है। इसके लिए अभिभावकों से भी सहमति ली जाती है। उच्च शिक्षा निदेशालय ने अभी जो आदेश जारी किया है कि मोबाइल पर प्रतिबंध लगेगा यह काफी अच्छा निर्णय है। बस जरूरत है इसे कड़ाई से लागू कराने की।
- डा. अंजली विक्रम सिंह, प्राचार्य, विध्य कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उरमौरा । अभिभावक चाहते हैं संतुलित इस्तेमाल
मौजूदा समय में मोबाइल का अत्यधिक इस्तेमाल हर छात्र-छात्रा के लिए नुकसानदेह ही है। ऐसी स्थिति में कालेजों में पूर्णतया प्रतिबंध तो ठीक नहीं है लेकिन संतुलित करना जरूरी है। कालेज आने-जाने में कई बार छात्राओं को अपने अभिभावक से बात करने की जरूरत होती है। कालेज कैंपस में इस्तेमाल ठीक नहीं है।
- अमित अवस्थी, राबर्ट्सगंज
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कालेज जाते समय कई बार बेटी को दिक्कत होती है। कभी साधन मिलने में दिक्कत होती है तो कभी किसी तरह की। ऐसे में एक उम्र के बाद मोबाइल देना चाहिए लेकिन उसका उपयोग संतुलित करने के लिए अभिभावक को स्वयं जागरूक होना होगा। कालेजों में मोबाइल का इस्तेमाल ठीक नहीं होता। इससे ध्यान उधर-उधर होता है।
- राजेश्वर दुबे, पकरी