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आदिवासियों को जागरूक कर मिटाया ऊंच-नीच का भेदभाव

उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर चपकी का वह इलाका जहां कभी नक्सलियों की बंदुकें गरजती थीं। यहां का आदिवासी परिवार अपने आपको असुरक्षित महसूस करता था। जागरूकता का इसकदर अभाव था कि इनके बीच के कई लोग समाज की मुख्य धारा से न जुड़कर नक्सल गतिवधियों में शामिल होकर देश, समाज के विरोधियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे। उस समय के बीच जो थोड़ा साधन संपन्न थे उनके और निम्न वर्ग के लोगों के बीच ऊंच-नींच की खाईं भी बड़ी गहरी थी। उसे पाटने के लिए हर कोई कोशिश करता लेकिन आदिवासी समाज की जागरूकता की कमी के कारण सफल हो पाना मुश्किल था। इसी बीच आदिवासियों के लिए फरिश्ता बनकर आए आनंद जी।

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 08:40 AM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 08:40 AM (IST)
आदिवासियों को जागरूक कर मिटाया ऊंच-नीच का भेदभाव

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर चपकी का वह इलाका जहां कभी नक्सलियों की बंदूकें गरजती थीं। यहां के आदिवासी परिवार अपने आपको असुरक्षित महसूस करते थे। जागरूकता का इस कदर अभाव था कि इनके बीच के कई लोग समाज की मुख्य धारा से न जुड़कर नक्सल गतिविधियों में शामिल होकर देश, समाज के विरोधियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे। उस समय के बीच जो थोड़ा साधन संपन्न थे उनके और निम्न वर्ग के लोगों के बीच ऊंच-नींच की खाईं भी बड़ी गहरी थी। उसे पाटने के लिए हर कोई कोशिश करता लेकिन आदिवासी समाज में जागरूकता की कमी के कारण सफल हो पाना मुश्किल था। इसी बीच आदिवासियों के लिए फरिश्ता बनकर आए आनंदजी।

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सेवा कुंज आश्रम चपकी में आदिवासियों के बीच रहकर इन्होंने पहले समाज को जागरूक करना शुरू किया। जब कुछ आदिवासी जागरूक हो गए तो उन्होंने ऊंच-नीच की खाईं को पाटने के लिए कदम बढ़ाना शुरू कर दिया। करीब दो दशक के अथक प्रयास के बाद इनकी मेहनत रंग लाई और अंतत: इस समाज के लोग भी जागरूक हो गए। आनंदजी बताते हैं कि अब काफी हद तक लोग जागरूक हुए हैं। फिर भी अभी और काम करने की जरूरत है। बताते हैं कि आदिवासियों को शिक्षित करने के साथ ही उनके अंदर संस्कार गढ़ने से सबकुछ आसान हुआ। कई बच्चे हुए हैं कामयाब

सेवा कुंज आश्रम में रहकर क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री आनंदजी ने आदिवासी समाज को आनंदित किया है। उन्होंने शिक्षित बनाने के साथ ही उन्हें संस्कारवान बनाया। इसकी बदौलत कई बच्चे अपनी मंजिल को पाने में कामयाब हुए हैं। इससे ये भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं। अब इनके अंदर भेदभाव की भावना खत्म हो रही है। जिनके घर के बच्चे शिक्षित और संस्कारवान बने हैं वे खुद अपने समाज को जागरूक भी कर रहे हैं।


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