40 साल बाद किसानों को राहत मिलने की उम्मीद
रेलवे लाइन निर्माण के लिए अपनी जमीन गंवाने के बावजूद तकरीबन 40 सालों से मुआवजे की आस लगाए किसानों को अब राहत मिलने के आसार नजर आ रहे हैं।
जागरण संवाददाता, अनपरा (सोनभद्र) : रेलवे लाइन निर्माण के लिए अपनी जमीन गंवाने के बावजूद लगभग 40 सालों से मुआवजे की आस लगाए किसानों को अब राहत मिलने के आसार नजर आने लगे हैं। अनपरा थाने में मंगलवार को प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में रेलवे के अधिकारियों ने दो माह के अंदर सभी रिकार्ड निकालकर मामले का निस्तारण करने के निर्णय को स्वीकार किया। इसके लिए रेलवे को 60 दिन का समय दिया गया है। 60 दिन में किसानों को मुआवजे संबंधी दस्तावेज स्थानीय प्रशासन को सौंपने होंगे। अन्यथा रेलवे के दोहरीकारण का काम खटाई में पड़ सकता है। इससे पहले मुआवजे की मांग को लेकर स्थानीय किसानों ने रेलवे के काम को बंद कराने की कोशिश की थी। जिसके बाद रेलवे के अधिकारियों, स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और किसानों के बीच पुलिस की मौजूदगी में वार्ता हुई।
अनपरा से शक्तिनगर रेलवे लाइन के लिए 1975 में अधिसूचना के तहत जमीन अधिग्रहित की गई थी। उस समय सिर्फ कुछ किसानों को ही मुआवजा दिया गया था जबकि अधिग्रहित जमीन में काफी हिस्सा इन किसानों और विस्थापितों का भी था जिन्हें रिहंद जलाशय के निर्माण के समय डूब जाने वाली जमीन के बदले दिया गया था। तत्कालीन एसएलओ (विशेष भूमि अधिस्थापित अधिकारी) ने गवर्नमेंट ग्रांट के तहत मिली जमीनों के मालिकों को यह कहकर गुमराह किया कि उनका मुआवजा जिला प्रशासन को सौंप दिया गया है और मुआवजा जिला प्रशासन ही बांटेगा। जिस कारण रेलवे द्वारा अधिग्रहित जमीन पर आज तक उन्हीं जमीन मालिकों के नाम दर्ज हैं। विस्थापित नेता पंकज मिश्रा ने बताया कि इस मामले में आरटीआइ के माध्यम से लगातार जानकारी मांगी गई। लेकिन दस साल में भी रेलवे द्वारा कोई भी सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई। अभिलेख उपलब्ध न होने का दावा कर जमीन मालिक को उसके हक से वंचित नहीं किया जा सकता। बैठक के मौजूद रेलवे के मुख्य अभियंता राकेश कुमार ने बताया कि पहले ये जोन पूर्व रेलवे के अन्तर्गत था, बाद में पूर्व मध्य रेलवे में परिवर्तित हो गया। जिस कारण भूमि अधिग्रहण व मुआवजे संबंधी अभिलेख उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। इस संबंध में प्रशासन का जो भी निर्णय होगा वह हमें मान्य होगा। बैठक की अध्यक्षता कर रहे उपजिलाधिकारी रामचंद्र यादव ने कहा कि रेलवे की जिम्मेदारी है कि वह लेखागार सहित अन्य सभी संबंधित कार्यालयों से संबंधित अभिलेख एकत्रित करे। इस काम में प्रशासन रेलवे की पूरी मदद करेगा। इस परियोजना से अनपरा व औड़ी के लगभग 100 किसान प्रभावित हुए हैं। औड़ी में लगभग 25 एकड़ और अनपरा में 27 एकड़ के अलावा ककरी, बासी, खड़िया में भी जमीन अधिग्रहण से प्रभावित है।