कौमी एकता का प्रतीक बावन डंडे का ताजिया
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सीतापुर : नगर का ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया कौमी एकता का प्रतीक है। रौजा दरवाजा स्थित युसुफ खान गाजी की दरगाह पर ताजिया को अंतिम रूप दिया जा रहा है। नवीं मुहर्रम की रात दरगाह के पास चबूतरे पर इसे दर्शनाथ रखा जाएगा। दस मुहर्रम को शाम पांच बजे ताजिया चबूतरे से उठकर रात बारह बजे दादा मियां की मजार के पास रखा जाएगा। ग्यारह मुहर्रम को सुबह दस बजे कदीमी रास्तों से होकर कर्बला पहुंचेगा। जहां देर शाम लाखों अकीदतमंदों की मौजूदगी में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। 52 डंडे के ताजिया की शुरुआत यहां 600 वर्ष पूर्व आए प्रथम मुगल युसुफ खान गाजी ने कराई थी। खैराबाद में 52 मुहल्ले हैं, जहां विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। हर मुहल्ले का एक डंडा बतौर प्रतीक मानकर ताजिया में शामिल किया गया। इसका मकसद नगर की गंगा जमुनी संस्कृति व एकता को मजबूत करना था। तबसे यह परंपरा आज भी जीवित है। 52 डंडे के ताजिया जुलूस में विभिन्न धर्मों के लोग आज भी श्रद्धा से शामिल होते आ रहे हैं। ग्यारह मुहर्रम को 52 डंडे का ताजिया देखने देश के विभिन्न प्रांतों से लाखों जायरीन खैराबाद आते हैं। चित्र-08एसआइटी07-
ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया कस्बे में भाईचारे की आज भी पहचान है। ताजिया देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।
माता प्रसाद अवस्थी चित्र-08एसआइटी08-
यह ताजिया खैराबाद की शान है। हर मुहल्ले का इसमें प्रतिनिधित्व है। सभी धर्मों के लोग इसमें शामिल होते हैं।
इज्जत चित्र-08एसआइटी09-
यह ताजिया एकता का प्रतीक है और लोगों को आपस में जोड़ता है। इसे आज भी समरसता का प्रतीक मानते हैं।
जुनैद खां चित्र-08एसआइटी10-
52 डंडे का ताजिया पुरखों की बनाई परंपरा है। इसे आज भी निभाया जा रहा है। लाखों लोग इसे देखते आते हैं।
अफजाल अंसारी