घूमने लगा करघा, चल पड़ी जिदगी
पानीपत भदोही मिर्जापुर से एक दशक बाद लौटे लोगों ने शुरू किया दरी बुनाई का काम
सीतापुर : क्षेत्र के अकबरगंज गांव का मजरा है करीमनगर। यहां से बड़ी संख्या में लोग 10 से 15 वर्ष पूर्व पानीपत, भदोही, मिर्जापुर आदि शहरों में कमाने के लिए चले गए थे। लॉकडाउन ने इनको फिर से अपने पैतृक घरों को पहुंचा दिया। लॉकडाउन में काम धंधा बंद हुआ तो इनके पास अपने गांव आने के अलावा अन्य कोई सहारा नहीं बचा। यहां से पलायन करने से पूर्व यह लोग दरी बुनाई का काम करते थे। लौटकर आए तो उसे पुश्तैनी धंधे को ही पकड़ लिया है।
घरों में करघा लगाकर दरी बुनाई का काम करने लगे हैं। करीमनगर के जमशेद ने पानीपत में 10 वर्ष बिताए। वह कहते हैं कि लॉकडाउन में इस सच्चाई का पता चला कि अपना गांव, अपना ही होता है। अब तक जो हुआ भूल जाएंगे, अपने गांव में रहकर पुश्तैनी धंधा शुरू कर दिया है। दरी बुनकर परिवार का खर्च चल जाएगा। सीतापुर के दरी उद्योग को सरकार ने ओडीओपी योजना में भी शामिल किया है। ऋण भी आसानी से मिल जाएगा तो काम अच्छा चलेगा। अहमद नूर भी पानीपत में थे। जहां काम करते थे उन लोगों ने सहारा देने से मना कर दिया। इससे वह भी गांव आकर दरी बुनाई में लग गए हैं। परिवार के सदस्यों के साथ अपना परंपरागत कार्य फिर से शुरू कर दिया है। शारीरिक दूरी के साथ मॉस्क लगाकर सब काम करते हैं। गांव की यादें ले आई घर
रुखसार ने बताया कि वह भदोही व मिर्जापुर में कई वर्ष तक रहे। वहां काम करके खर्च चल जाता था। लेकिन गांव, घर की याद आया करती थी। कोरोना महामारी ने ऐसा समय ला दिया कि हम अपने वतन आ गए। यहां आकर वह खुश हैं। रुखसार ने भी करघा लगाकर दरी बुनाई का काम शुरू कर दिया है। वर्जन-
उनके यहां 44 लोग बाहर से आए हैं। क्वारंटाइन व जांच के बाद कुछ लोगों ने पुश्तैनी दरी का काम शुरू किया है। जिन लोगों ने मनरेगा में काम की इच्छा जताई उनको काम दिया है। गांव को कई बार सैनिटाइज करा चुके हैं।
नत्थाराम, प्रधान अकबरगंज