बेरिहागढ़ डीह सहित कई गावों में ऐतिहासिक अवशेष
महोली कस्बे के पश्चिम-उत्तर दिशा में करीब 15 किमी कठिना नदी किनारे बेरिहागढ़ गांव है।
महोली (सीतापुर) : कस्बे के पश्चिम-उत्तर दिशा में करीब 15 किमी कठिना नदी किनारे बेरिहागढ़ गांव है। यहां आज भी सदियों पुरानी ऐतिहासिक अवशेष मिलते हैं। कठिना नदी किनारे के इस गांव में बारिश के दौरान ग्रामीणों को भगवान विष्णु, यक्ष-यक्षिणी जैसी दुर्लभ मूर्तियां मिली हैं।
इतिहास के अनुसार, पुराने समय में बेरिहागढ़ राजधानी थी। यहां राजा हीर सिंह-वीर सिंह का दरबार था। नदी के दूसरे छोर पर करीब डेढ़ बीघे में 30 फिट ऊंचाई में डीह है। बुजुर्गों का कहना है यदि 'डीह' की खोदाई हो तो कल्पना से भी परे तमाम बेशकीमती दुर्लभ वस्तुएं प्राप्त हो सकती हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि राजा हीर सिंह-वीर सिंह ने अल्हा-उदल को लगान देना स्वीकार नहीं किया था। जिससे युद्ध में हीर सिंह-वीर सिंह को पराजित होना पड़ा था। ये युद्ध आल्हखंड में 'गांजर की लड़ाई' के नाम से वर्णित है।
बेरिहागढ़ में दफन है इतिहास
गांव की कुलदेवी नकटी मंदिर के पुजारी कामतादास बताते हैं कि खुदाई के समय में ग्रामीणों को अक्सर चांदी के सिक्के मिल जाते हैं। कई वर्ष पहले गांव के एक व्यक्ति को आदमकद की तलवार मिली थी। नदी पर बने जीर्ण-शीर्ण पुल के सामने घुड़साल के अवशेष मिलते हैं। खुदाई में नर-कंकाल भी मिले हैं जो काफी बड़े और विशाल हैं। खुदाई में प्राप्त हुई यक्ष-यक्षिणी की मूर्ति को नकटी देवी मंदिर परिसर में स्थापित किया गया है।
आसपास के गांवों का इतिहास
कठिना नदी आल्हखंड इतिहास की सरपरस्त है। किनारे बसे गांव ऐतिहासिक धरोहर संजोए हुए हैं। कठिना के एक तरफ के गिरधरपुर, सील्हापुर, बगचन, जमुनिया, अल्हना और बेरिहा गांव तमाम इतिहास समेटे हैं। इसी तरह दूसरे किनारे सहिबानगर, हिदूनगर गांव इसके अनकहे और अनगढ़े इतिहास के चश्मदीद गवाह हैं। सील्हापुर गांव बुंदेलखंडी नायक आल्हा-उदल की निशानी का प्रत्यक्ष उदाहरण है। यहां सिलहट देवी की स्थापना आल्हा ने ही की थी।