हाथों के हुनर को मिला हथकरघा का सहारा
गैर राज्यों से गांव लौटे लोगों ने शुरू पुश्तैनी कारोबार किया। जिससे उनकी रोजगार की किल्लत दूर हुई।
सीतापुर: विकास क्षेत्र सकरन की ग्राम पंचायत रसूलपुर बकैया में हथकरघा कारोबार काफी समय से संचालित हैं। बाहर से लौटे श्रमिकों को इस कारोबार ने बड़ा सहारा दिया है। लॉकडाउन से जब काम धंधे बंद हुए, श्रमिक घर आए तो हथकरघा कारखानों में काम मिल गया। गांव के मोहम्मद शकील व जीशान कई वर्ष पहले रोजगार की तलाश में पानीपत गए थे। लॉकडाउन लगा तो फैक्ट्रियां बंद हो गई। फैक्ट्री मालिकों ने मदद से मना कर दिया। इस पर यह लोग अपने गांव चले आए। हस्तशिल्प की जानकारी इनको पहले से थी। गांव में आकर पुश्तैनी कारोबार शुरू कर दिया है। शकीन व जीशान खुश हैं, कहते हैं कि हथकरघा से परिवार का खर्च चल जाएगा। परिवार के सदस्य भी साथ में सहयोग करते हैं। अपना पुराना काम मन को भाने लगा है। अलाउद्दीन, नसीम और अजमुद्दीन मुंबई की एक फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन में जब फैक्ट्री बंद हो गई। बड़ी मुश्किलें पैदा हो गई तो गांव चले आए। गांव में पहले से स्थापित हथकरघा उद्योग में दरी बनाने का काम शुरू कर दिया है। अपने गांव में आकर बचपन के साथियों के साथ काम करते हुए कब दिन बीत जाता है पता नहीं चलता। दरी के काम से मतलब भर की मजदूरी मिल जाती है। जितना अधिक काम करेंगे मुनाफा भी अधिक होगा। अब बाहर नहीं जाना, गांव में ही दरी का पुश्तैनी काम करते रहेंगे।
प्रवासियों को मिल रहा काम : हथकरघा संचालक बदरुद्दीन ने बताया कि उनके कारखाने में 40 श्रमिकों को रोजगार मिलता है। दिन-रात चार शिफ्टों में काम होता है। एक मजदूर 300 रुपये प्रतिदिन आसानी से कमाता है। बाहर से आए 20 प्रवासियों को उन्होंने काम दिया है। यह लोग मेहनत से काम कर रहे हैं।
वर्जन-
लॉकडाउन से बड़ी संख्या में प्रवासी गांव लौटे। यहां स्थापित हथकरघा कारोबार ने श्रमिकों को बड़ी राहत दी। काफी श्रमिकों को इसमें रोजगार मिला है। श्रमिकों को मनरेगा से भी काम देने के लिए प्रयास जारी है।
इमामन, प्रधान रसूलपुर बकैया