एजेंडे से सैनिकों का दर्द गायब
कभी सरहद की रखवाली करने वाले प्रहरियों को आज कचोट रही है सियासत की बेरुखी
सीतापुर : लोकसभा चुनाव में सेना की बहादुरी, पराक्रम और शौर्य का मुद्दा खूब छाया हुआ है। इसके विपरीत सैनिकों के मुद्दे नेताओं के एजेडे से गायब हैं। कभी दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले इन बहादुरों में आज की राजनीति को लेकर टीस है..दर्द है..! जिसे सुनने वाला कोई नहीं है। पूर्व सैनिकों को नेताओं की बेरुखी कचोट रही है। वन रैंक, वन पेंशन की बातें होती है, लेतो किन उसकी विसंगतियों को आज तक दूर नहीं किया जा सका। चुनाव में कोई भी सैनिकों के इस दर्द को छू नहीं रहा। नेताओं की बेरुखी कचोटती है। सेना पर सियासत तो होती है, लेकिन सैनिकों का कोई दर्द नहीं सुन रहा। चुनाव के मौसम में नेता हम लोगों का शिकार करने आते हैं, फिर दिखते नहीं। बड़ी-बड़ी बातें करने वालों को शहीद पार्क की बदहाली नहीं दिखती है।
प्रमोद यादव, पूर्व सैनिक 2011 में ओसियारी कमेटी बनी थी, जिसकी सिफारिश तक लागू नहीं हो सकी पूर्णरुप से। 62, 65, 71 की लड़ाई में शहीद हुए जवानों की शहादत भुलाई नहीं जा सकती। चुनाव के समय में नेता अपनी रोटिया सेंकने आ जाते है। आज तक कोई दर्द पूछने नहीं आया।
नंदकिशोर वर्मा, पूर्व सैनिक बैंक करते मनमानी
नेता लोग हम लोगों पर राजनीति करते हैं, लेकिन समस्याओं के निस्तारण पर आज तक ध्यान नहीं दिया। हम लोगों को पेंशन सीधे सेना के कोषागार से मिले। सालों हो जाते हैं पेंशन नहीं मिलती। बैंक मनमानी करती है।
आलोक दीक्षित, सैनिक, सेवानिवृत्त पांच साल हो गए सरकार को, एक बार सांसद जी ने बुलाया था। पहले हर माह डीएम, एसपी सैनिक प्रकोष्ठ की बैठक करते थे। अब तो वह भी नहीं होती। कई परेशानियां हैं। वन रैंक, वन पेंशन की बात भी कोई नहीं करता। सब मौका परस्त है।
अशोक कुमार, पूर्व सैनिक