बौर खिला हो तो न करें कीटनाशक का छिड़काव
सीतापुर: जिले में आम के बेहतर और गुणवत्तापूर्ण पैदावार के लिए कीट एवं रोगों का उचित समय पर प्रबंधन ब
सीतापुर: जिले में आम के बेहतर और गुणवत्तापूर्ण पैदावार के लिए कीट एवं रोगों का उचित समय पर प्रबंधन बेहद जरूरी है। क्योंकि बौर निकलने से लेकर फल लगने तक की अवस्था बेहद संवेदनशील होती है। मौजूदा समय में आम की फसल को मुख्य रूप से भुनगा, मिज कीट व खर्रा रोग से क्षति पहुंचने की आशंका रहती है। जिला उद्यान अधिकारी रामनरेश वर्मा ने यह जानकारी देते हुए बताया कि आम के बागों में भुनगा कीट कोमल पत्तियों, छोटे फलों के रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं। जिससे प्रभावित भाग सूखकर गिर जाता है। साथ ही यह कीट मधु की तरह का पदार्थ भी विसर्जित करता है, जिससे पत्तियों पर काले रंग की फफूंद जम जाती है। जिसके फलस्वरूप पत्तियों द्वारा होने वाली प्रकाश संश्लेषण की क्रिया धीमी पड़ जाती है। इसी तरह आम के बौर में लगने वाला मिज कीट मंजरियों व तुरंत बने फलों, मुलायम कोपलों में अंडे देती है, जिसकी सूंड़ी अंदर ही अंदर खाकर क्षति पहुंचाती हैं। जिसकी वजह से प्रभावित भाग काला पड़ कर सूख जाता है। भुनगा व मिज कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मिली प्रति लीटर पानी) या क्लोरीपाइरीफास (2.0 मिली लीटर पानी) अथवा डामेथोएट (2.0 मिली लीटर पानी) की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इसी प्रकार खर्रा रोग के प्रकोप से ग्रसित फल एवं डंठलों पर सफेद चूर्ण के समान फफूंद की वृद्धि दिखाई देती है। प्रभावित भाग पीले पड़ जाते हैं। मंजरियां सूखने लगती हैं। इस रोग से बचाव के लिए ट्राइडोमार्फ 1.0 मिली लीटर या डाएनोकेप 1.0 मिली लीटर पानी की दर से भुनगा कीट के नियंत्रण के लिए प्रयोग किए जा रहे घोल के साथ मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। बागों में जब बौर पूर्ण रूप से खिला हो तो उस अवस्था में कम से कम रसायनिक दवाओं का छिड़काव किया जाये। जिससे पर-परागण क्रिया प्रभावित न हो सके।